महारानी लक्ष्मीबाई के संघर्ष की गवाही आज भी देता है ये किला

उत्तर प्रदेश के झांसी जिले में स्थित किले का नाम आजादी की लड़ाई में अपने योगदान के लिए सुनहरे इतिहास में दर्ज है। यह किला आजादी की कई लड़ाइयों का गवाह रहा है। सत्रहवीं शताब्दी का यह किला राजा वीर सिंह ने एक पहाड़ी पर सेना के दुर्ग के तौर पर बनवाया गया था। यह किला रानी लक्ष्मीबाई के नेतृत्व में लड़ी गई लड़ाई का भी गवाह है। आज भी इस लड़ाई को गीतों में सुनाया जाता है। शायद ही कोई होगा जिसने यह नहीं सुना होगा- बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।

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इस किले के अंदर भगवान शिव और भगवान गणेश के मंदिर बने हैं। प्रसिद्ध कड़क बिजली और भवानी शंकर नाम की तोपें भी इस किले के अंदर रखी हुई हैं। यहां एक संग्रहालय भी है जहां अनेक मूर्तियां हैं जो बुंदेलखंड के इतिहास के गौरव की कहानियां कहती हैं। इस किले का निर्माण ओरछा के बुंदेल राजा वीरसिंह जुदेव ने कराया था। प्राकृतिक सौंदर्य और कला-शिल्प वाले 15 एकड़ में फैले इस किले की सुंदरता देखते ही बनती है। किले के भीतर कला के बहुत सुंदर नमूने देखने को मिलते हैं, जिन्हें कैमरे में कैद करने के लिए यहां आने वाले सैलानियों में होड़ लगती है। उत्तर प्रदेश राज्य के झांसी में बंगरा नामक पहाड़ी पर 1613 इस्वी में यह दुर्ग ओरछा के बुंदेल राजा वीरसिंह जुदेव ने बनवाया था। 25 वर्षों तक बुंदेलों ने यहां राज्य किया, उसके बाद इस दुर्ग पर क्रमश मुगलों, मराठों और अंग्रजों का अधिकार रहा। मराठा शासक नारुशंकर ने 1729-30 में इस दुर्ग में कई बदलाव किए, जिससे यह परिवर्धित क्षेत्र शंकरगढ़ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में इसे अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ। 1938 में यह किला केंद्रीय संरक्षण में लिया गया। यह दुर्ग 15 एकड़ में फैला हुआ है।

इसमें 22 बुर्ज और दो तरफ खाई है, जो सुरक्षा के नजरिए से महत्वपूर्ण है। नगर की दीवार में 10 दरवाजे थे। इसके अलावा चार खिड़कियां थीं। दुर्ग के भीतर बारादरी, पंचमहल, शंकरगढ़, रानी के नियमित पूजा स्थल शिवमंदिर और गणेश मंदिर हैं। इनमें मराठा शैली की बहुत सुंदर कला कृतियां हैं।

किले में कूदान स्थल, कड़क बिजली तोप पर्यटकों को विशेष रूप से आकर्षित करते हैं। किले में मौजूद फांसी घर को राजा गंगाधर के समय प्रयोग किया जाता था, जिसका प्रयोग रानी लक्ष्मीबाई ने बंद करवा दिया था। किले के सबसे ऊंचे स्थान पर ध्वज स्थल है, जहां तिरंगा लहराता है। किले से शहर बहुत सुंदर दिखाई देता है। यह किला भारतीय पुरातत्व विभाग की सुरक्षा में है। इसे देखने के लिए बड़ी संख्या में सैलानी पहुंचते हैं। झांसी किले में साउंड एंड लाइट शो का आयोजन कराया जाता है। यह शो रानी लक्ष्मीबाई के जीवनकाल और 1857 की आजादी की पहली लड़ाई की कहानी को दर्शाता है।