लंकापति रावण और महाबली बाली, दोनों में था छत्तीस का आंकड़ा, बाली ने कई बार किया था परास्त

रामायण की कहानी जीवन की विषमताओं में इंसान को मार्गदर्शन देती है. उसका हर प्रसंग इन्सान को काफी कुछ सिखाता है. अब जैसे बाली और रावण दोनों ही बहुत बलशाली थे, और अहंकार से भरे हुए थे. पर रावण को कई बार बाली ने परास्त किया था. क्योंकि बाली के अन्दर इतनी शक्ति थी, उसे कोई नहीं हरा सकता तय. एक वरदान के कारण जो भी योद्धा उससे युद्ध करने के लिए जाता, उसकी आधी शक्ति बाली के अन्दर पहुँच जाती थी, और कितना भी बलवान योद्धा हो वो उसके सामने दुर्बल हो जाता था.

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ये भी कहा जाता है कि, समुद्र मंथन के समय बाली ने देवताओ की सहायता की थी. और एक बार तो अकेले ही पूरा समुद्र मंथन कर दिया था. बाली बहुत शक्तिशाली था, और कहते हैं कि, वो एक ही दिन में पूरी पृथ्वी का चक्कर लगा लेता था. और ब्रह्माजी से उसे ये वरदान मिला था कि, जो भी उससे से युद्ध करेगा, उसकी आधी शक्ति बाली के पास चली जायेगी, और फिर युद्ध करने वाला एक तरह से उसके सामने शक्तिहीन हो जाएगा. इसी वरदान की वजह से लंकापति रावण को उसने कई बार बुरी तरह परास्त किया. ये भी कहा जाता है कि, बाली ने लम्बे समय तक रावण को अपनी कांख में दबाकर भी रखा था.

बाली ने मय दानव के पुत्र दुदुम्भी को मारकर चार कोस दूर फेंक दिया था. दुदुम्भी में एक हज़ार हाथियों का बल था, उस समय संसार में ऐसा कोई भी नहीं था, जो बाली से सामने से युद्ध कर सकता हो. यहां तक कि, उसकी शक्ति के चलते सुग्रीव ने भी अपने मित्र श्रीराम को उसके सामने जाने से मना किया था. किन्तु रामजी, सुग्रीव को वचन दे चुके थे कि, वो बाली का वध ज़रूर करेंगे, उसके बाद योजना के अनुसार सुग्रीव ने जाकर बाली को द्वंद युद्ध के लिए ललकारा, और जब दोनों युद्ध करने लगे, तो श्रीराम ने एक पेड़ के पीछे से उस पर बाण चलाया, और बाली का हमेशा के लिए अंत हो गया।