सुग्रीव से मित्रता करने ‌के लिए माता शबरी ने भी कहा था श्रीराम से

भगवान श्रीराम के भक्त कहां नहीं हैं, तीनों लोकों में हर जगह प्रभु राम हैं, और हर जगह हैं उनके भक्त। लेकिन त्रेतायुग में भगवान श्रीराम के भक्तों को उनका सान्निध्य प्राप्त हुआ। और प्रभु राम के भक्त उनके दर्शन मात्र से मुक्त हो गए। उनकी ऐसी ही एक भक्त थीं माता शबरी।

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माता शरबी अपने गुरु के कहने पर सालों भगवान श्री राम की साधना में लगी रही। भगवान श्री राम के आने के इंतजार में माता शबरी रोजाना अपने आश्रम को साफ करती, भगवान श्री राम के लिए फल लाकर रखती, कुटिया के प्रवेश द्वार को नए फूलों से सजाकर रखती थी। जब भगवान राम अपने भाई के साथ माता शबरी के आश्रम में पहुंचे तो उनकी तपस्या पूर्ण है। इस प्रसंग को लेकर कई लोगों के मन में सवाल आता है कि माता शबरी कई वर्षों से वन में श्री राम की प्रतीक्षा क्यों कर रही थी? इसका वर्णन भी धर्म ग्रंथों में मिलता है।

मान्यता है कि माता शबरी का वास्तविक नाम ‘श्रमणा’ था और वह भील समुदाय की शबरी जाति से संबंध रखती थी। माता शबरी के पिता भीलों के राजा थे और उन्होंने अपनी बेटी शबरी के विवाह के लिए सैकड़ो पशुओं को बलि के लिए इकट्ठा किया हुआ था। जब माता शबरी को इस बारे में पता चला तो पशुओं की जान बचाने के लिए माता शबरी विवाह से एक दिन पहले भाग कर दंडकारण्य वन में पहुंच गई। दंडकारण्य वन में पहुंचने के बाद माता शबरी रोजाना सुबह जल्दी उठकर ऋषियों के आश्रम से नदी तक का रास्ता साफ़ कर देती थी। माता शबरी कई सालों तक बिना किसी को बताए यह कार्य करती रही।

जब मतंग ऋषि को इस बारे में पता चला तो वह खुश हुए और सामाजिक बहिष्कार स्वीकार करके माता शबरी को अपने यहां आश्रय दिया। इसके बाद माता शबरी उनके आश्रम में रहकर ही भगवान की साधना करने लगी। जब मतंग ऋषि का अंत समय निकट आया तो उन्होंने माता शबरी को बुलाकर कहा कि वह आश्रम में ही भगवान श्री राम की प्रतीक्षा करें। एक दिन भगवान श्री राम उनसे मिलने जरूर आएंगे। अपने गुरु के कहने पर माता शबरी सालों तक आश्रम में भगवान की साधना में लगी रही और उनके आने की प्रतीक्षा करती रही।

जब भगवान राम अपने भाई के साथ माता शबरी की आश्रम में पहुंचे तो माता शबरी उनके चरणों में गिर गई। कुछ देर बाद उन्हें स्मरण हुआ कि उन्होंने अपने भगवान को भोग नहीं लगाया। इस पर माता शबरी भगवान श्री राम के लिए बेर लेकर आई, लेकिन इस डर से कि कहीं बेर खट्टे न हो माता शबरी हर बेर को चखकर भगवान श्री राम को देने लगी।

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भगवान श्री राम ने भी बड़े प्रेम से उनके झूठे बेर खाए। जब भगवान लक्ष्मण ने अपने भाई को माता शबरी के झूठे बेर खाते हुए देखा तो वह अचंभित हो गए। इस पर भगवान श्री राम ने भगवान लक्ष्मण को समझाया कि यह झूठे बेर शबरी की भक्ति हैं और इसमें उनका प्रेम है। भगवान श्री राम के दर्शन करने के बाद माता शबरी स्वयं को योगाग्नि में भस्म करके सदा के लिए श्री राम के चरणों में लीन हो गईं और मोक्ष को प्राप्त किया।

कबंध राक्षस की तरह ही माता शबरी ने भी भगवान श्री राम को सुग्रीव से मित्रता करने के लिए कहा था। जब भगवान राम ने माता शबरी को बताया कि वह रावण से युद्ध करने के लिए जा रहे हैं तो माता शबरी ने भगवान राम को पंपा सरोवर जाने के लिए कहा और उन्हें बताया कि वहां सुग्रीव से आपकी मित्रता होगी।