अटलजी के ‌जीवन में 7 अंक का आंकड़ा

राजनीति की धुरी में यदा कदा कुछ ऐसे लोग भी आ जाते हैं, जो राजनीति के लिए बने ही नहीं होते, उन्हें साम दाम दंड भेद नहीं आता, लेकिन दिलों को जीतना आता है, वो किसी भी सियासी दल से परे होते हैं, दल का अस्तित्व उनकी वजह से होता है, और नियति पहले ही उनका बहुत कुछ बनना तय कर देती है|

पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई, जो अब हमारे बीच नहीं हैं, बेशक उनके जाने से एक युग का अंत हुआ है, वो महानायक चला गया, जिसने हिन्दुस्तान की ताक़त को दुनियांभर में साबित किया, सफल परमाणु परीक्षण करके देश को दुनिया के सामने परमाणु शक्ति से संपन्न राष्ट्र होने का गौरव दिलवाया, कारगिल के ज़रिये दुश्मन देश का हौसला पस्त किया, भारत रत्न, पद्म विभूषण न जाने कितने सम्मानों से उन्हें नवाजा गया, लेकिन इन सभी सम्मानों से बड़ा था उनका व्यक्तित्व, और वो उपलब्धियां जो हमेशा सबके बीच रहेंगी, देश की सियासत में भाजपा का आज जो कद है, उसका आगाज़ उन्होंने बहुत पहले कर दिया था, और उनकी दूरदर्शी सोच का तो जवाब ही नहीं था, बहुत पहले उन्होंने इस बात की भविष्यवाणी भी कर दी थी कि, एक दिन देश में भाजपा शासित पूर्ण बहुमत वाली सरकार होगी| खैर इन सब बातों से परे जब उनकी शख्सियत की बात की जाती है, तो उनके कितने स्वरुप उभरकर आते हैं, लेखक, पत्रकार, कवि और राजनेता तक के सफ़र में शून्य से शिखर तक पहुँचने की उनकी दास्तान|

एक बात का ज़िक्र यहाँ बेहद ज़रूरी है, अटलजी की जिंदगी में सात अंक की बहुत अहमियत रही, जैसे 25 दिसंबर को उनका जन्म हुआ, जिसे जोड़ने पर सात अंक आता है, और उनके जन्म का वो साल 1924 का सम्पूर्ण जोड़ भी सात होता है, जब पहली बार प्रधानमंत्री कार्यालय में उन्होंने 16 मई को कार्यभार सम्हाला उसका जोड़ भी सात था, और जिस दिन उनकी मौत हुई यानि 16 अगस्त जिसे जोड़ने पर भी सात अंक आता है, यानि उनके जीवन से मृत्यु तक के बीच की तीन बड़ी महत्वपूर्ण घटनाओं से सात अंक का बहुत गहरा रिश्ता रहा| सात अंक पर ही इस अटल सूर्य का उदय हुआ और सात अंक वाले दिन ही ये अस्त हुआ, और इसके साथ ही अस्त हो गया राजनीति के क्षितिज का ध्रुवतारा, जो काल के कपाल पर एक ऐसा गीत गाकर चला गया, जिसकी पंक्तियाँ सदैव उन्हें, हमारे बीच होने का एहसास दिलाती रहेंगी|

जीवन नश्वर है, जन्म होने के साथ ही मृत्यु तय हो जाती है, सारी अनिश्चितताओं के बीच में सिर्फ यही निश्चित है, और फिर शुरू होती है जीवन और मौत के बीच की वह अनिश्चित यात्रा जो सबको तय करनी होती है, और ये यात्रा कर्मों के हिसाब से उपलब्धियों की गिनती बढ़ाती जाती है, ये उपलब्धियां अच्छी या बुरी दोनों तरह की होती है, नियति आपके सामने आपके हर कर्म का हिसाब रखती है, और फिर जब निश्चित पड़ाव की बारी आती है तो इंसान के व्यक्तित्व का सम्पूर्ण मापदंड सामने दिखाई देता है, और तब कर्मों के बही खाते में से जो बात निकलकर सामने आती है, उससे तय होता है कि, आपने अपने जीवन में क्या खोया और क्या पाया है|

महान बनने की कोशिश शायद कभी किसी को महान नहीं बनाती, महापुरुष तो बस बन जाते हैं, शायद पैदा होने के साथ ही उन्हें पूर्वाभास होता है कि, वो इस जहान में किसलिए आये हैं, और चल देते हैं उस अनवरत यात्रा पर जहाँ कोई पड़ाव उन्हें ठहरने नहीं देता, क्योंकि ठहराव तो अंत है, और इस अंत के बीच में जो अनंत है, उसकी ना तो सीमाएं हैं और ना परिभाषाएं |

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ये भूमिका उन सभी के लिए है जो इस ब्रह्माण्ड को कुछ देकर गए, गौतम बुद्ध से लेकर चाणक्य और अल्बर्ट आइन्स्टीन से लेकर अब्राहम लिंकन, शेक्सपियर और सत्यजीत रे से लेकर जयशंकर प्रसाद जैसे हजारों महान लोगों ने Universe में कुछ Values add की हैं, हम सबका ये दायित्व है कि, हम भी इस यूनिवर्स में कुछ Values add करें, जब आप ब्रह्माण्ड को कुछ देते हैं तो फिर यही ब्रह्माण्ड हमारे सामने अपने घुटनों पर बैठ जाता है, और सर झुकाकर कहता है, मेरी तरफ से इस यूनिवर्स में आपके लिए ये सम्मान है, जो आपको हमेशा मिलता रहेगा, आपके नहीं होने के बाद भी, क्योंकि आपने भी हमें कुछ दिया है, इसलिए आप इसके हक़दार हैं, और फिर सदियों तक आप इस यूनिवर्स का हिस्सा बन जाते हैं, और इस तरह चमकते रहते हैं जैसे करोड़ों तारों के बीच में ध्रुवतारा, उन करोड़ों तारों को कोई नहीं पहचानता, कोई उनका नाम नहीं जानता, वो आते हैं और चले जाते हैं, कुछ टूटकर गिर जाते हैं, कुछ यूँ ही टिमटिमाते हैं, क्योंकि ये उनका जीवन है और उस जीवन का कोई मकसद नहीं है|

लेकिन अटलजी जैसे महापुरुष मकसद के लिए ही जन्म लेते हैं, एक एक करके कितने युग पुरुष इस दुनिया से चले गए, उनके जाने का सबको बेहद अफ़सोस होता है, कोई उन्हें जाने नहीं देना चाहता, लेकिन कोई उन्हें जाने से रोक भी नहीं सकता, क्योंकि, मृत्यु अटल है, अटलजी आप हम सबकी भावनाओं में हमेशा जिंदा रहेंगे|