भारत की धरती वीरों की गाथाओं से भरी हुई है. इतिहास में उनके बारे में ज्यादा नहीं बताया गया. क्योंकि ये इतिहास तो हमारे भारत देश के वीरों है, लेकिन इसे लिखने वाले कोई और लोग ही थे. जिन्होंने मुगलों की कहानियों से इतिहास का हर कोना रच दिया है. उनके लिए अलाउद्दीन, बाबर और औरंगजेब जैसे लोग महान थे. लेकिन उनके बारे में कभी नहीं लिखा जो हमारे इस देश की मिट्टी की शान थे.
ऐसी ही एक महान वीरांगना थी. जिनका जन्म हुआ था 05 अक्टूबर सन 1524 के दिन. दुर्गाष्टमी के दिन जन्म हुआ था, इसलिए इनका नाम दुर्गावती रख दिया. रानी दुर्गावती, महाराज कीर्तिसिंह चंदेल की एक मात्र संतान थीं. इनका विवाह दलपत शाह से हुआ तथा इनको एक पुत्र प्राप्ति भी हुई. लेकिन इनके जीवन में भी पति का साथ ज्यादा दिनों तक नहीं था. विवाह के चार साल बाद ही पति की आकस्मिक मृत्यु हो गई, और इसके बाद उनके पुत्र वीरनारायण सिंह को राज्य का राजा घोषित किया. रानी दुर्गावती स्वयं उनकी संरक्षक बनीं. ये राज्य जबलपुर गोंडवाना नाम से हुआ करता था. उस समय इनके राज्य पे बहुत हमले हुए. मालवा के शासक बाजबहादुर ने कई बार उनके राज्य पे हमला किया, किंतुहर बार असफल रहा. उसके बाद इनके किले, जो कलांजीर दुर्ग के नाम से जाना जाता है, उस पर अकबर की नज़र पड़ी. वो किले को जीतना चाहता था और रानी को अपने हरम में रखना चाहता था. कुछ समय बाद युद्ध भी हुआ, और इस युद्ध में रानी दुर्गावती ने पराक्रम दिखाते हुए ज़बरदस्त संग्राम किया और मुगलों की लगभग 30000 की सेना को परास्त कर दिया.
पर दुर्भाग्यवश युद्ध में एक तीर उनकी आंख में लग गया, और एक गर्दन में. पर दोनों ही तीर उन्होंने निकालकर फ़ेंक दिए. पर लगातार संघर्ष करने के बाद उनमें लड़ने की क्षमता नही रही, और अपनी ही कतार से स्वयं का अंत कर लिया. ये घटना सन 1564 की है. जीते जी उन्होंने अपने राज्य की और स्वयं की गरिमा को अकबर को छूने भी नहीं दिया. और अपने राज्य अपनी प्रजा के लिए स्वयं को न्योछावर कर दिया.