पुष्कर की यात्रा के बिना अधूरी है चार धाम की यात्रा

एक तीर्थ जिसे धरती पर ब्रह्माजी का स्थान कहा जाता है। कहते हैं यहां पर जो झीलें हैं वो ब्रह्माजी के हाथ से कमल गिरने की वजह बनीं। राजस्थान के अजमेर से लगभग 15 किलोमीटर दूर हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल पुष्कर है। सनातन धर्म में पुष्कर का विशेष महत्व है क्योंकि यह दुनिया में एकमात्र ऐसी जगह हैं जहाँ सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा की पूजा की जाती है। पुष्कर में हर साल कार्तिक पूर्णिमा पर मेले का आयोजन किया जाता है। जिसे पुष्कर मेला कहा जाता है।

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पुष्कर मेला हमारी सांस्कृतिक विरासत की अनुपम धरोहर है। इससे हिन्दुओं की आस्था जुड़ी हुई है। पूरे देश से साधु-संत पुष्कर मेले में पहुंचते हैं। साथ ही देश-दुनिया से लाखों की संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक भी मेले में आते हैं। कार्तिक पूर्णिमा पर श्रद्धालु पुष्कर झील में स्नान करते हैं और भगवान ब्रह्मा की पूजा अर्चना करते हैं।

हिंदू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा के दिन पुष्कर झील में स्नान करने का विशेष महत्व है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन हिन्दुओं के सभी देवी-देवता पुष्कर झील में एकत्रित होते हैं। इसलिए हिन्दू धर्म में पुष्कर झील को बहुत पवित्र माना गया है। एक मान्यता यह भी है कि इस झील का निर्माण भगवान ब्रह्मा जी ने करवाया था।

धार्मिक ग्रंथ महाभारत में भी पुष्कर को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है। महाभारत के अनुसार तीनों लोकों में मृत्युलोक सबसे सर्वश्रेष्ठ है। मृत्युलोक में देवताओं का सबसे प्रिय स्थान पुष्कर है। चारों धामों की यात्रा करने के बाद पुष्कर झील में डुबकी लगाना जरूरी है। ऐसा नहीं करने पर सारे पुण्य निष्फल हो जाते हैं। धार्मिक ग्रंथों में पुष्कर को तीर्थों का सम्राट और तीर्थ गुरु भी कहा गया है। यही कारण है कि चारों धामों की यात्रा करने वाले श्रद्धालु एक बार पुष्कर आकर स्नान जरूर आते हैं।

धार्मिक मान्यता के अलावा पुष्कर मेले को पशुओं और खासतौर पर ऊंटों की खरीद-फरोख्त के लिए जाना जाता है। मेले में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम इसका प्रमुख आकर्षण है। यहां लोक संस्कृति व लोक संगीत का शानदार नजारा देखने को मिलता है। पुष्कर मेले में अलग-अलग संस्कृतियों का मिलन होता है। मेले में देश के अलग-अलग हिस्सों से लोग पहुंचते हैं। साथ ही बड़ी संख्या में विदेशी पर्यटक भी पुष्कर मेले में आते हैं।