जितनी जल्दी हो सके इन 14 अवगुणों का कर दें त्याग…

गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरित मानस के अनुसार प्रभु श्रीराम अपनी वानर सेना के साथ जब लंका आए थे, तब उन्होंने रावण के दरबार में अंगद को दूत बनाकर भेजा था. लंका के दरबार में अंगद और रावण के बीच हुए संवाद से ऐसे 14 अवगुणों के बारे में पता चलता है, जिन्हें छोड़ देने से हम अपने जीवन को सफल बना सकते हैं. नहीं तो जीवन में कई परेशानिया बढ़ सकती हैं.


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लंका के दरबार में अंगद रावण से कहते हैं कि

कौल कामबस कृपिन बिमूढ़ा। अति दरिद्र अजसी अति बूढ़ा।।
सदा रोगबस संतत क्रोधी। बिष्नु बिमुख श्रुति संत बिरोधी।।
तनु पोषक निंदक अघ खानी। जीवत सव सम चौदह प्रानी।।

अर्थ: वाम मार्गी यानी दुनिया से उलटा चलने वाला, कामी, कंजूस, अत्यंत मूर्ख, अति दरिद्र, बदनाम, बहुत बूढ़ा, नित्य रोगी, हमेशा क्रोध में रहने वाला, भगवान से विमुख, वेद और संतों का विरोधी, अपना ही पोषण करने वाला, निंदा करने वाला और पाप कर्म करना, ये 14 बुराइयां जल्द से जल्द छोड़ देनी चाहिए, वरना जीवन की मुश्किलें बहुत बढ़ जाती है.

ये है पूरा प्रसंग
इस प्रसंग के अनुसार अंगद ने बिना किसी संकोच के प्रभु श्रीराम के आदेश का पालन किया. जब वे लंका में पहुंचे तो सबसे पहले उनका सामना रावण के पुत्र से हुआ. और फिर दोनो के बीच कहा-सुनी और लड़ाई हुई, जिसमें अंगद विजयी हुए. इसके बाद अंगद की मुलाकात हुई रावण से जहां उन्होंने बताया कि वे बाली के पुत्र हैं. ये सुनते ही रावण थोड़ा भयभीत हो गया.

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अहंकार ले डूबा रावण को
वहां अंगद ने रावण को समझाते हुए कहा कि आप सकुशल माता सीता को छोड़ दें और श्रीराम से य़ुद्ध न करें. लेकिन रावण पर इस बात का कोई असर नहीं हुआ. उसी प्रसंग के अंतर्गत उन 14 अवगुणों का जिक्र करते हुए अंगद ने कहा रावण से कि जो भी व्यक्ति इन 14 अवगुणों के साथ जीवित है उन्हें मृत समान ही माना जाता है. इसके बाद वहां से चले गए फिर जो हश्र हुआ उसे पूरी दुनिया जानती है.