हिंदू धर्म में पूजा शुरू होने से पहले पूजा में बैठे सभी लोगों को तिलक लगाया जाता है और मौली बांधी जाती है. जिस पूजा में इस कार्य को नहीं किया जाता उसे अधूरा माना जाता है. मौली यानी सूत का लाल-पीले रंग का धागा जिसे रक्षासूत्र भी कहा जाता है. पंडित इसे मंत्रोच्चार के साथ कलाई पर बांधते हैं. माना जाता है कि ऐसा करने से देवी-देवता प्रसन्न होते हैं. आयुर्वेद के अनुसार मौली बांधने से शरीर में होने वाले दोष को दूर किया जा सकता है.
काशी के धर्म जानकार ने बताया कि मौली बांधने की प्रथा कई वर्षों से चली आ रही है. सबसे पहले इंद्राणी ने इंद्रदेव को फिर दानवीर राजा बलि की अमरता के लिए वामन भगवान ने उनकी कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा था. इसलिए आपने देखा व सुना होगा कि मौली को कलाई पर बांधते समय पंडित राजा बलि से जुड़ा मंत्र बोलते हैं. वेदों में भी रक्षासूत्र बांधने का विधान बताया गया है.
आयुर्वेद में कलाई पर मौली का महत्व
सुश्रुत संहिता के अनुसार सिर के बीच के हिस्से और गुप्त स्थान के अगले हिस्से को मणि कहते हैं. कलाई को मणिबंध कहा गया है. इस विषय पर आयुर्वेद के अनुसार मानसिक विकृति और मूत्र संबंधी बीमारियों को दूर करने के लिए मणिबंध (कलाई का हिस्सा) पर मौली बांधना अच्छा रहता है. जानकारी के अनुसार मर्म चिकित्सा में कलाई को भी शरीर का मर्म स्थान माना गया है. शायद आपको जानकर हैरानी होगी की कलाई से पूरे शरीर की क्रियाओं को कंट्रोल किया जा सकता है. उदहारण के तौर पर जब भी “जी मचले या घबराहट हो” तब एक हाथ की कलाई पर दूसरे हाथ की हथेली से गोल-गोल घुमाएं या आसान शब्दों में कहें तो हल्की सी मालिश करें. ऐसा करने से राहत मिलेती है. ImageSource
मौली के होते हैं 5 रंग
मौली कच्चे धागे या सूत से बनाई जाती है. लाल, पीला, नीला, सफेद और हरे, रंगों के धागे से मौली बनाई जाती है. ज्यादातर तीन रंगों (लाल, पीला, नीला) का इस्तेमाल होता है. कुछ जगह में नीले और सफेद रंग के धागे भी तीन रंग वाले मौली में मिलाए जाते हैं. जिस मौली में 3 धागे हों उसे त्रिदेव का, और जिसमें 5 धागे हों उसे पंचदेवों का प्रतीक माना जाता है.