सनातन धर्म में पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और नदी-झीलों को बराबर का महत्व दिया गया है। धार्मिक आस्थाओं के चलते यह आज मनुष्य के जीवन का हिस्सा है। लोग आज भी इनकी पूजा करते हैं। इसका एक उदहारण है पीपल का पेड़, जिसे हिन्दू धर्म में सर्वोत्तम और दैवीय वृक्ष माना गया है। माना जाता है कि पीपल के पेड़ में सभी देवी-देवताओं का वास होता है। हालांकि पीपल का पेड़ सिर्फ धार्मिक ही नहीं बल्कि वनस्पति विज्ञान और आयुर्वेद की दृष्टि भी ख़ास है। पीपल में मौजूद औषधीय गुण मनुष्यों को कई रोगों से राहत दिलाते हैं।
बता दे कि पीपल का वानस्पतिक नाम फ़ाइकस रिलिजियोसा है। इसकी छाल और पत्तों का चूर्ण बनाकर उससे कुल्ला करने से मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं। सांस संबंधी समस्या से परेशान व्यक्ति अगर पीपल की छाल का अंदरूनी हिस्सा सुखाकर, उसका चूर्ण बनाकर सेवन करें तो उसे लाभ मिलता है। पीपल की पत्तियों का काढ़ा बनाकर उसका सेवन करने से हृदय रोग से पीड़ित व्यक्ति को राहत मिलती है। पीपल के पत्तों और गुड़ को बारीक पीसकर उसकी गोली बनाकर दिन में तीन-चार बार सेवन करने से पेट दर्द से छुटकारा मिलता है। कब्ज की समस्या से पीड़ित व्यक्ति के लिए भी पीपल के पत्ते फायदेमंद होते हैं।
पीपल के पत्तों को पीसकर उसे चर्म विकारों जैसे फोड़े-फुंसी, दाद-खाज और खुजली पर लगाने से राहत मिलती है। साथ इसके पत्तों से बना रस पीने से भी चर्म रोग से छुटकारा मिलता है। शरीर के किसी भी हिस्से पर घाव होने पर पीपल के पत्तों का गर्म लेप रोजाना लगाने से राहत मिलती है और घाव जल्दी भर जाता है। सूखे हुए पीपल के पत्तों और मिश्री का काढ़ा बनाकर पीने से सर्दी-जुखाम से राहत मिलती है। त्वचा की झुर्रियों को कम करने के लिए भी पीपल के पत्तों का उपयोग किया जाता है। साथ ही पीपल के तने से बनी दातुन का उपयोग करने से दांत मजबूत और सफ़ेद होते हैं।
हालांकि पीपल का उपयोग करने से पहले हमें कुछ सावधानी भी रखना चाहिए। जैसे इसका काढ़ा 50-100 मिली और चूर्ण 3-6 ग्राम मात्रा में ही सेवन करना चाहिए। इसके साथ ही पीपल का उपयोग चिकित्सक के परामर्शानुसार ही करना चाहिए।