कलिंग के युद्ध के बाद सिर्फ शान्ति और मोक्ष की कामना करने लगे थे सम्राट अशोक

भारत के महान सम्राटों में से एक सम्राट अशोक को अशोक महान कहा जाता है. जिनका प्रतीक हमारा अशोक स्तम्भ है. सम्राट अशोक का पूरा नाम था देवांनाप्रिय अशोक मौर्य. उनके पिता का नाम बिन्दुसार था और दादा का नाम था सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य. कहा जाता है कि, उनके पिता की 16 पटरानियाँ थीं. और उनके 101 पुत्र थे. राजगद्दी के लिए उनके भाइयों के साथ ही उनका गृहयुद्ध हुआ था, तब जाकर उन्हें सत्ता मिली थी. सम्राट अशोक ने करीब 40 वर्ष तक शासन किया था. उज्जैन के महाराज विक्रमादित्य की परम्परा को आगे बढ़ाते हुए सम्राट अशोक के दरबार में भी नौ रत्न हुआ करते थे.

सम्राट अशोक मगध के सम्राट थे, और पाटलिपुत्र उनके राज्य की राजधानी हुआ करती थी. कहने को तो वो केवल मगध के ही सम्राट थे लेकिन उनका राज्य और बर्चस्व पूरे भारतवर्ष में था. उस समय ये देश अखंड भारत हुआ करता था, और ईरान से लेकर बर्मा तक सम्राट अशोक का साम्राज्य फैला हुआ था. उत्तर में हिन्दुकुश की श्रंखला से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी और मैसूर, कर्नाटक और पूर्व में बंगाल के साथ पश्चिम में अफगानिस्तान तक उनका एकछत्र साम्राज्य था. भारत में केवल कलिंग ऐसी जगह थी, जहाँ उनका राज्य नहीं था. फिर भी वो उस समय का सबसे बड़ा भारतीय साम्राज्य कहा जाता है. सम्राट अशोक ने जहाँ जहाँ साम्राज्य किया वहां अपने अशोक स्तम्भ बनवाए.

कलिंग पर साम्राज्य की उनकी हसरत ने उनका जीवन बदल दिया. उस युद्ध में बहुत बड़े पैमाने पर योद्धाओं और मानव जाति का अंत हो गया था. और वहां की स्थिति देखकर उनके ह्रदय में किसी को जीतने के इच्छा ही समाप्त हो गई. उस युद्ध के बाद वो सिर्फ शांति और मोक्ष की कामना करने लगे थे. और उसके बाद उन्होंने पूरी दुनिया में घूम घूमकर शांति के प्रचारक के रूप में काम किया.