भारत के गौरवशाली किले : आमेर किला भगवान राम के वंशजों से है इस किले का संबंध

राजे- रजवाड़े और किले-महलों के प्रदेश राजस्थान में एक बहुत ही महत्वपूर्ण और आकर्षक फोर्ट है आमेर का किला। इसे आंबेर का किला भी कहा जाता है। ऊंची पहाड़ी पर स्थित यह किला राजस्थान की राजधानी जयपुर की उपनगरी आमेर नगर में स्थित है और यह दूर से ही दिखाई देने लगता है। इस नगर को बसाने का श्रेय मीणा राजा आलन सिंह को जाता है लेकिन यहां किले का निर्माण बाद में सन् 1558 से 1592 के बीच कछवाहा राजपूत मान सिंह प्रथम ने कराया। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह भी है कि इसका संबंध भगवान श्रीराम के वंशजों से जुड़ा हुआ है। गौरव की बात यह भी है कि कम्बोडिया के फ्नोम पेन्ह में वर्ष 2013 में आयोजित विश्व धरोहर समिति के 37वें सत्र में राजस्थान के पांच अन्य दुर्गों सहित आमेर दुर्ग को भी पर्वतीय दुर्गों की श्रेणी के रूप में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है।ImageSource

आंबेर या आमेर नाम यहां स्थित चील के टीले नामक पहाड़ी पर स्थित अम्बिकेश्वर मंदिर के आधार पर रखा गया। अम्बिकेश्वर नाम भगवान शिव के उस रूप का है, जो इस मंदिर में स्थित है, अर्थात अम्बिका के ईश्वर। ऐसा भी कहा जाता है कि किले को यह नाम देवी दुर्गा के पर्यायवाची शब्द अम्बा से मिला है। इसके अलावा इसे अम्बावती, अमरपुरा, अम्बर, आम्रदाद्री एवं अमरगढ़ नाम से भी पहचाना जाता रहा है।

यह भी महत्वपूर्ण बात है कि यहां के राजपूत खुद को भगवान श्रीराम के पुत्र कुश के वंशज मानते हैं। इसी कारण उन्हें कुशवाहा उपनाम मिला, जो बाद में कछवाहा हो गया। यहां के अधिकांश लोग अपने वंश का मूल अयोध्या के इक्ष्वाकु वंश के विष्णु भक्त राजा अम्बरीष के नाम से जोड़ते हैं। राजा अम्बरीष ने दीन-दुखियों की सहायता हेतु अपने राज्य के भंडार खोल रखे थे। यही विशेषता कछवाहा राजाओं में भी रही।

आमेर किला कभी कछवाहा राजपूत राजाओं की राजधानी हुआ करती थी, लेकिन जयपुर नगर बसने के बाद उसकी राजधानी जयपुर बन गई। इसी प्रकार आमेर स्थित संघी जूथाराम मंदिर में मिले राजा जयसिंह काल के विक्रम संवत् 1714 यानी सन् 1657 के शिलालेख के अनुसार आमेर को अम्बावती नाम से ढूंढाड़ क्षेत्र की राजधानी बताया गया है। यह शिलालेख राजस्थान के संग्रहालय में आज भी देखा जा सकता है।

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यह किला और उसके अंदर स्थित महल अपने कलात्मक और हिंदू वास्तु शैली के लिए भी प्रसिद्ध है। दुर्ग की विशाल प्राचीरों, दरवाजों की शृंखलाओं एवं पत्थर के बने रास्तों वाला यह किला पहाड़ी से ऐसा आभास देता है जैसे वह ठीक नीचे बने मावठा सरोवर में देख रहा हो। लाल बलुआ पत्थर एवं संगमरमर से बना यह आकर्षक एवं भव्य किला पहाड़ी के चार स्तरों पर बना हुआ है, जिसमें से प्रत्येक में विशाल प्रांगण है।

इसमें दीवान-ए-आम अर्थात जन साधारण का प्रांगण, दीवान-ए-खास अर्थात विशिष्ट प्रांगण, शीश महल या जय मंदिर एवं सुख निवास आदि हैं। सुख निवास के हिस्से में जल धाराओं से कृत्रिम रूप से बना वातावरण यहां गर्मी के दिनों में भी शीतलता प्रदान करता था। यह महल कछवाहा राजपूत महाराजाओं एवं उनके परिवारों का निवास स्थान हुआ करता था। दुर्ग के भीतर महल के मुख्य प्रवेश द्वार के निकट ही इनकी आराध्य चैतन्य पंथ की देवी को समर्पित एक मंदिर है। जयगढ़ किले और आमेर किले के बीच दो किलोमीटर लंबा एक गुप्त मार्ग भी बना हुआ है। इस रास्ते से होकर एक से दूसरे किले में पहुंचा जा सकता है। महल का एक और आकर्षण गणेश गेट है, जिसे प्राचीन समय की कलाकृतियों और आकृतियों से सजाया गया है। आमेर किले की आंतरिक सुंदरता में यहां बना शीश महल सबसे अधिक आकर्षक है। ImageSource

सैलानियों के लिए किले का एक बड़ा आकर्षण हाथी की सैर है, जो उन्हें आमेर किले में ले जाते हैं। इस प्रकार राजपूतों के सभी किलों और महलों में आमेर का किला सबसे रोमांचक और आकर्षक है। इसे देखने के लिए हर साल देश-विदेश के हजारों पर्यटक पहुंचते हैं, क्योंकि अन्य कई किलों से यहां का राजसी वैभव और शिल्प कुछ हटकर दिखाई देता है।