जब रावण शांति प्रस्ताव नहीं माना तो उसे अपने स्वामी श्री राम की शक्ति का आभास कराने के लिए अंगद ने राम का स्मरण करके अपना पांव उस के दरबार में जमा दिया और घोषणा कर दी कि अगर आपके किसी योद्धा ने मेरा पैर जमीन से हिला दिया तो राम जी बिना युद्ध लड़े अपनी सेना के साथ वापस चले जाएंगे।
यहां अंगद ने श्री राम की शक्ति और श्री राम के प्रति अपने विश्वास की पराकाष्ठा का प्रदर्शन किया और साथ ही इस में सफल होने पर रावण को यह संदेश चला जाता कि राम का एक-एक दूत तुम्हारी सारी सेना पर भारी है।यह कूटनीतिक युद्ध की एक चाल होती है जिसे अंगद ने वहां बखूबी निभाया।
मेघनाथ जैसा योद्धा अंगद के पैर को धरती से डिगा नहीं सका और जब रावण स्वयं अंगद का पैर उठाने के लिए झुका तो अंगद ने स्वयं अपना पैर हटा लिया और कहा ‘मुर्ख पैर पकड़ने हैं तो राम जी के पकड़।’
यहां अंगद की एक चतुराई थी-अगर रावण अंगद का पैर उठा देता तो अंगद शर्त हार जाते और अगर रावण भी अंगद का पैर न उठा पाता तो वह युद्ध हार जाता। ऐसे में राम के हाथों जो नर लीला होनी थी उस पर एक विराम लग जाता।
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वीरता पर बुद्धि का अंकुश आवश्यक है। जोश में होश नहीं खोने चाहिए परन्तु रावण अपने नाना की कोई बात नहीं सुनता
अपने ससुर मय दानव की कोई बात नहीं सुनता। यहां तक कि अपनी माता कैकसी के समझाने पर कहता है
-रावण अब दूध पीता अबोध शिशु नहीं
-बड़ों की उंगली के सहारे चलने वाला नन्हा नादान नहीं
-अपना भला-बुरा भली-भांति समझता है आपका पुत्र
-आपने हमें जन्म अवश्य दिया है परंतु अपने जीवन के निर्माता हम स्वयं हैं
-हम अपना भूत वर्तमान भविष्य स्वयं बनाएंगे आपको हमारी चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं माता।
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Jai Shriram 🙏
Gepostet von Arun Govil am Freitag, 5. Juni 2020
अपने अभिभावकों और शुभचिंतकों के प्रति रावण के ये बोल हम आज भी अपने समाज में बहुत से लोगों के मुंह से सुनते हैं। परंतु रामायण यह प्रमाणित करता है कि अपने बड़ों का, अपने माता-पिता का अपमान करने वाला चाहे जितना बड़ा ज्ञानी हो, चाहे जितना बड़ा शक्तिशाली हो पर उसका सर्वनाश हो जाता है और इसका सबसे बड़ा उदाहरण है रावण।
वहीं अपने माता-पिता और बड़ों का सम्मान करने वाला, धर्म पर चलने वाला, भले अकेला हो परंतु सम्मानित भी होता है और यश वैभव भी अर्जित करता है और इसका उदाहरण है विभीषण।
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मंदोदरी भी रावण को समझाती है तो वो कहता है कि ‘मुझे ना कहने की हिम्मत बड़े-बड़े देवी-देवताओं में नहीं है तो बेचारी सीता क्या है? मैं त्रिलोक विजयी हूं।’
इस पर मंदोदरी ने कहा-‘आप भुजबल से त्रिलोक जीत सकते हैं परंतु एक सती सतवंती नारी के मन को नहीं जीत सकते। स्त्री प्रेम में तो फूल की पंखुड़ी के समान कोमल है परंतु अपने सत्य धर्म के पालन में वह हिमालय से भी अविचल है।’
‘एक सती स्त्री का हृदय बड़े से बड़े प्रलोभन और भीषण से भीषण भय से भी अपने धर्म से कण भर भी विचलित नहीं होता।’
मंदोदरी अनेकानेक तर्क देकर रावण को समझा रही है और वह उतने ही कुतर्क देकर अपने अहंकार को और बढ़ा रहा है।
मंदोदरी फिर कहती है —‘काल किसी को लाठी लेकर नहीं मारता। वो प्राणी के धर्म, बल, बुद्धि और विचार को नष्ट कर देता है और फिर प्राणी को भ्रम हो जाता है कि वो जो कह रहा है या कर रहा है वही सत्य है।
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राम जी को ये विश्वास होता है कि रावण शायद रात भर सोच विचार के बाद शांति प्रस्ताव मान जाए पर विभीषण के गुप्तचरों से पता चलता है कि वह युद्ध के निश्चय पर अटल है, किसी की कुछ नहीं सुन रहा, कुछ नहीं मान रहा तो राम भी अंततः युद्ध का निश्चय कर लेते हैं।
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ब्रह्मांड के देवता, संसार के सारे ऋषि मुनि, राम जी के इस निर्णय से प्रसन्न होते हैं क्योंकि इस समय सारा संसार, सारा ब्रह्मांड रावण के पापों से, अत्याचारों से और रावण के आतंकवाद से त्रस्त है।
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सूर्योदय होता है एक महाविनाश के सूत्रपात के साथ। एक अभिमानी राजा सत्ता और बल के मद में, एक नारी के मोह में अपने सारे राज्य को विनाश के मुंह में धकेल देता है और प्रारंभ होता है राम रावण युद्ध