बाली ने अपने पुत्र अंगद को स्वयं समर्पित किया था भगवान श्रीराम की सेवा में

हिन्दुओं के पवित्र धार्मिक ग्रंथ रामायण में एक महत्वपूर्ण प्रसंग बाली पुत्र अंगद से जुड़ा हुआ है। कहते हैं कि जब भगवान श्रीराम अपनी सेना के साथ लंका पहुंचे तो उन्होंने रावण के पास अपना दूत भेजने का निर्णय लिया। ऐसे में भगवान श्रीराम ने सभा बुलाई और पूछा कि दूत बनाकर किसे भेजा जाए? सभा में उपस्थित सदस्यों ने प्रस्ताव दिया कि हनुमानजी पहले ही लंका में जाकर माता सीता तक भगवान श्रीराम का संदेश पहुंचा चुके हैं। ऐसे में उन्हें ही दूत बनाकर रावण के पास भेजना चाहिए। उसी समय सभा में मौजूद श्रीजामवंत महाराज ने श्रीराम को सलाह दी कि वापस हनुमानजी को दूत बनाकर भेजने से यह संदेश जाएगा कि श्रीराम की सेना में अकेले हनुमान ही पराक्रमी है। इसलिए अंगद को दूत बनाकर भेजना चाहिए। श्रीराम को उनकी बात सही लगी और उन्होंने अंगद को दूत बनाकर भेजा।

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रावण के दरबार में पहुंचकर अंगद ने रावण को समझाया कि तुमने माता सीता का हरण किया है। यदि तुम अपनी भूल सुधारकर श्रीराम की शरण में जाओगे तो वह तुम्हे क्षमा कर देंगे। अंगद की बात सुनकर रावण उनका मजाक उड़ाने लगा। यह देख अंगद ने अपना एक पांव जमीन पर पटका और रावण को चुनौती दे डाली कि अगर लंका में कोई वीर है तो मेरा पैर जमीन से उठाकर दिखाए। एक-एक कर सभा मौजूद सभी लोगों ने अंगद का पैर उठाने की कोशिश की लेकिन कोई भी उनके पैर को हिला नहीं पाया।

अंत में जब रावण स्वयं अंगद का पैर उठाने आया तो अंगद ने अपना पैर हटा लिया और रावण से कहा कि मेरे चरण क्यों पकड़ते हो। पकड़ना ही है तो भगवान श्रीराम के चरण पकड़ लो। वह दयालु हैं। आपको क्षमा कर देंगे। अन्‍यथा तुम्हारी मृत्‍यु तय है। यह कहकर अंगद रावण के दरबार से चले गए। अंगद के इस पराक्रम से भगवान श्रीराम भी बहुत प्रसन्न हुए।

बता दे कि अंगद वनराज बाली के पुत्र थे। जब प्रभु श्रीराम ने बाली का अंत किया था तब मरने से पहले बाली को श्रीराम के ईश्वर होने का ज्ञान हो गया था और उन्होंने अंत समय में अपने पुत्र अंगद को प्रभु श्रीराम के सेवक के रूप में समर्पित कर दिया। भगवान श्रीराम ने भी बाली की इच्छा का सम्मान करते हुए अंगद को स्वीकार कर लिया। इसके बाद श्रीराम ने सुग्रीव को किष्किन्धा का राजा बनाया और अंगद युवराज बनाए गए। अंगद ने माता सीता की खोज करने वाली वानरी सेना का नेतृत्व किया था।