जातक कथा-कितना भयानक होता है क्रोध, पुनर्जन्म में भी नहीं छोड़ा प्रतिशोध

जातक कथाएं भगवान बुद्ध की सांस्कृतिक विरासत है। करीब 600 जातक कथाओं के माध्यम से भगवान बुद्ध ने हमें कर्मों पर जोर देने और क्रोध, द्वेष जैसे अवगुणों से दूर रहने के लिए कहा है। ऐसी ही एक जातक कथा है कि एक समय छद्दन्त हाथियों का राजा छद्दन्तराज अपनी दो पत्नियों महासुभद्दा और चुल्लसुभद्दा के साथ एक गुफा में निवास करता था। एक दिन छद्दन्तराज अपनी दोनों पत्नियों के साथ जल क्रीड़ा करने के लिए सरोवर पर गया। छद्दन्तराज ने खेल-खेल में सरोवर के तट पर स्थित साल के वृक्ष को अपनी सूंड से हिलाया तो संयोग से वृक्ष के फूल महासुभद्दा पर गिरे जबकि सूखी टहनियाँ चुल्लसुभद्दा पर आ गिरी। चुल्लसुभद्दा ने इसे अपना अपमान माना और छद्दन्तराज को छोड़कर चली गई। छद्दन्तराज ने चुल्लसुभद्दा ढूंढने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं मिली।

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कालांतर में चुल्लसुभद्दा का जन्म मद राज्य के राजा के यहां हुआ और विवाह के बाद वह वाराणसी की पटरानी बनी। चुल्लसुभद्दा के मन में छद्दन्तराज के प्रति इतना द्वेष था कि उसे पिछले जन्म की सभी बातें याद थी। प्रतिशोध की आग में जल रही चुल्लसुभद्दा ने राजा को छद्दन्तराज का दंत लाने के लिए उकसाया। चुल्लसुभद्दा की बात में आकर राजा ने सोनुत्तर नाम के निषाद के नेतृत्व में निषादों की एक टोली बनवाई और आदेश दिया कि छद्दन्तराज का दंत लेकर आओ।

राजा के आदेश के अनुसार सोनुत्तर अन्य निषादों के साथ छद्दन्तराज को खोजने के लिए निकल पड़ा। सात वर्ष, सात महीने और सात दिनों बाद सोनुत्तर को छद्दन्तराज के निवास स्थान का पता चल गया। सोनुत्तर ने छद्दन्तराज को पकड़ने के लिए वहां एक गड्ढा खोदा और पत्तों से ढंक दिया। इसके बाद सोनुत्तर पेड़ों के पीछे छिपकर छद्दन्तराज के आने की प्रतीक्षा करता रहा। छद्दन्तराज जब गुफा से बाहर आया तो सोनुत्तर ने उस पर विष बाण चला दिया। विष बाण से घायल छद्दन्तराज ने पेड़ों के पीछे छिपे सोनुत्तर को देख लिया और उसे मारने के लिए दौड़ा। हालांकि सोनुत्तर ने उस समय गेरुआ वस्त्र पहना हुआ था, इस कारण छद्दन्तराज ने उसे छोड़ दिया।

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छद्दन्तराज से प्राणों की भीख मिलने से सोनुत्तर का ह्रदय परिवर्तित हो गया। उसने छद्दन्तराज को पूरी कहानी सुनाई कि वह यहां उसका दंत लेने के लिए क्यों आया है। सोनुत्तर से कहानी सुन छद्दन्तराज ने मरने से पहले स्वयं अपना दंत तोड़कर सोनुत्तर को दे दिया। सोनुत्तर ने महल में आकर रानी को छद्दन्तराज का दंत और उसके मरने की खबर दी। छद्दन्तराज के मरने की खबर सुनकर रानी को गहरा आघात लगा और उसने अपने प्राण त्याग दिए।