साल 2020 धीरे धीरे अपने अंतिम पड़ाव की तरफ़ बढ़ रहा है. लेकिन ये वर्ष पूरी दुनिया को एक बुरा अनुभव देकर गया है. कोरोना महामारी ने जिस तरह की तबाही मचाई, उसके ज़ख़्म शायद ही कभी भर पाएँगे. जिन लोगों ने इस बीमारी की वजह से अपनों को खोया है, उनके लिए तो ये साल शायद किसी क़हर से कम नहीं. अभी भी कोरोना का असर चरम पर है. कोरोना वायरस के संक्रमण के लिहाज़ से भारत भी दुनिया के सबसे अधिक प्रभावित देशों में से एक है. यह साल अपने अंतिम पड़ाव हालाँकि अब लोगों ने अपनी ज़िंदगी फिर से शुरू कर दी है, और धीरे धीरे हर जगह लॉकडाउन से अनलॉक की प्रक्रिया भी लगभग पूरी हो चुकी है. दुनिया के सारे देशों के वैज्ञानिक वैक्सीन बनाने की कोशिश में दिन रात जुटे हैं. ऐसे में हर किसी के लिए यही बड़ी चुनौती है, कि अपने आप को फिट कैसे रखें, और कैसे इम्यूनीटि को स्ट्रांग रखें.
जो लोग कोरोना की चपेट में आए हैं या अन्य किसी वायरस से संक्रमित हुए हैं तो उनको बता दें कि शरीर में एंटीबॉडी पहले से ही होती है, जो वायरस से लड़कर शरीर को सुरक्षित रखती है. एंटीबॉडी, प्रॉटीन से बनीं खास तरह की कोशिकाएं होती हैं, इसे बी-लिम्फोसाइट कहते हैं. यहां पर कईयों के मन में सवाल आ सकता है कि एंटीबॉडी कितने समय तक के लिए कारगर रहती है? तो आपको बता दें कि घबराने की कोई बात नहीं है शरीर अपनी ज़रूरत के हिसाब से एंटीबॉडी को बढ़ा या घटा सकता है.
एंटीबॉडी के विषय पर लंदन के एक एक्सपर्ट ने बताया कि महज एंटीबॉडी ही हमारे इम्यून सिस्टम के बारे में नहीं बताती. यह तो सिर्फ एक हिस्सा है इम्यून सिस्टम का, जिसे मापा नहीं जा सकता. उनके अनुसार, जब कोई भी वायरस शरीर में प्रवेश करता है तो इम्यून सिस्टम, एंटीबॉडी का रूप धारण कर लेती है. और फिर यह शरीर का सुरक्षा कवच बनकर वायरस से लड़ती है और शरीर को सुरक्षा प्रदान करती है.
जानकारी के अनुसार, 20 जून से 28 सितंबर के बीच ब्रिटेन में लगभग 3.5 लाख लोगों पर एंटीबॉडी टेस्ट किए गए थे. इस टेस्ट में 18 से 24 वर्ष तक की उम्र के लोगों में कम गिरावट देखी गई, वहीं सबसे ज्यादा गिरावट 75 साल के लोगों में देखी गई. साथ ही इस जांच से पता चला है कि एंटीबॉडी का स्तर 6 प्रतिशत से घटकर 4.8% रह गया है.