जहाँ फुटबॉल का ज़िक्र हो, और डिएगो आर्मैंडो मैराडोना का ज़िक्र न हो, ये तो संभव ही नहीं. पूरी दुनिया जिसे सलाम करती थी. दुनिया के हर बड़े फुटबॉल मैदान में जिसके नाम का डंका बजता था. कल यानि बुधवार 25 नवम्बर को को 60 साल की उम्र में उनका निधन हो गया. मैराडोना का जन्म ब्यूनस आयर्स के लानुस में एक गरीब परिवार में हुआ था. और उनका बचपन एक झोंपड़पट्टी में गुज़रा, मैराडोना के पिता डॉन डिएगो और मां साल्वाडोरा फ्रेंको को 3 बेटियों के बाद पहला बेटा मिला था. ये परिवार बाद में बढ़कर 8 भाई-बहनों वाला हो गया. मैराडोना जब 3 साल के थे, तो उन्हें उनके भाई ने एक फुटबॉल गिफ्ट की थी. तभी से मैराडोना को फुटबॉल से इतना प्यार हुआ कि वो 6 महीने तक उसे अपनी शर्ट के भीतर रखकर ही सोते थे. हालांकि फुटबॉल खेलना उन्होंने काफी कम उम्र में ही शुरू कर दिया था, 10 साल की उम्र में मैराडोना रोजा एस्ट्रेला क्लब के लिए खेलते थे, पर 12 साल की उम्र तक उन्हें बॉल ब्वॉय का ही रोल मिला.15 साल की उम्र में उन्होंने अर्जेंटीनोस जूनियर्स के लिए प्रोफेशनल करियर की शुरुआत की.1977 में उन्हें नेशनल टीम में शामिल किया गया. हालांकि, 1978 वर्ल्ड कप के लिए उन्हें टीम में ये कहकर शामिल नहीं किया गया कि वे अभी बच्चे हैं.
1981 में उन्हें बोका जूनियर्स क्लब ने साइन किया.1982 में मैराडोना ने बोका जूनियर्स से खेलते हुए उन्होंने पहला मेडल हासिल किया, जब मैराडोना 1986 का वर्ल्ड कप खेल रहे थे. इंग्लैंड के खिलाफ क्वार्टर फाइनल मुकाबला था. मैराडोना ने मैच में दो गोल किए. इनमें से एक गोल को हैंड ऑफ गॉड कहा जाता है.
इसी फुटबॉल में मैराडोना ने इतनी महारत हासिल कर ली कि गोल ऑफ द सेन्चुरी किया. इसे हैंड ऑफ गॉड का नाम दिया गया और इसी की बदौलत अर्जेंटीना वर्ल्ड कप जीता. उन्हें FIFA ने प्लेयर ऑफ द सेन्चुरी भी चुना. ये अवॉर्ड उन्होंने एक और फुटबॉल लीजेंड पेले के साथ साझा किया था.
बाद में उन्हें अपनी कुछ गलतियों की ऐसी सजा भुगतनी पड़ी कि, उनका पूरा कैरियर ख़तम हो गया, और उनके नाम पर दाग भी लग गया. पर आज भी जब अच्छी फुटबॉल खेलने के लिए जेहन में किस का नाम आता है, तो मैराडोना को पूरी दुनिया सलाम करती है.