इस जीवन में जो इंसान महान कार्य करके जाता है, उसका सिर्फ मनुष्य ही नहीं बल्कि मानवता और ब्रह्माण्ड सभी ऋणी होते हैं. शरीर नश्वर है, और ये परमात्मा का दिया हुआ है, इस धरती पर हर मनुष्य की छोटी सी जीवन यात्रा होती है, लेकिन जो अपने लिए जीते हैं, वो बस एक यात्रा पूरी करके जाते हैं, और जो दूसरों के लिए जीते हैं, वो युगों युगों तक एक महायात्रा का हिस्सा बन जाते हैं, जो धरती पर तब तक रहती है, जब तक ये मनुष्यता है. भारत वर्ष की धरती पर एक से बढ़कर एक एक दानी राजा और ऋषि मुनि हुए हैं, और सबसे बड़े दानियों के रूप में राजा बलि, महर्षि दधीचि और महाबली कर्ण का नाम लिया जाता है. वैसे तो देखा जाए इस संसार में कोई भी दानवीर नहीं हो सकता इस संसार में सब कुछ परमात्मा का दिया हुआ है वह हमारी परीक्षा लेता है कि हमारी दी हुई चीजों को कितना वापस देना जीव को आता है, तो सच्चा और सबसे बड़ा दानवीर तो परमात्मा होता है, को इस प्रकृति में प्रदत्त हर चीज़ हमें दे रहे हैं. भोजन से लेकर हमारी साँसों तक और पहाड़ों से लेकर नदियों तक सबकुछ परमात्मा का ही दिया हुआ तो है.
वैसे तो हर किसी का दान अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण होता है, और किसी की तुलना नहीं करना चाहिए, मगर इन तीनों में से तुलना की जाए तो सब अपनी अपनी जगह पर परिस्थितियों के हिसाब से सबसे बड़े दानवीर हैं. शास्त्र ये भी कहते हैं, कि सबसे बड़ा दान तो ज्ञान का दान है. जो मनुष्य ज्ञान का दान करता है वह सबसे बड़ा महादान है.
जब जब संसार में दानवीरों की चर्चा होती है, तब राजा शिवि, हरिश्चंद्र, कर्ण, बलि और दधीचि का नाम आदर के साथ लिया जाता है. महाराज बली ने भगवान वामन के मांगने पर पृथ्वी, आकाश पाताल और स्वयं तक को दान में समर्पित कर दिया. इसलिए उन्हें भगवान वामन ने चिरंजीव होने का वरदान भी दिया. महाराज बली के इसी दान वीरता के कारण दिवाली महोत्सव के दौरान उनकी याद में बली प्रतिपदा का पर्व मनाया जाता है, और दक्षिण भारत में ओणम का पर्व मनाया जाता है. और निसंदेह उनका दान बहुत महान है.
वहीं कर्ण का दान अलग है. आवश्यक वस्तुओं का दान सभी अपनी सुविधा के अनुसार करते हैं, ये कम और ज्यादा भी हो सकता है. लेकिन कर्ण के बारे में एक और बात ये भी है, कि दान देने के साथ ही उन्होंने दान लिया भी था. कौरवों द्वारा उन्हें अंग देश का दान मिला था, और एक बार अर्जुन द्वारा प्रदत्त जीवन दान, यही कारण कर्ण को बली महाराज और महर्षि दधीचि से कमतर बनाती है. और एक सबसे बड़ी बात यहाँ मानवता की भी है, कर्ण ने भरी राजसभा में एक स्त्री के साथ हुई अभद्रता और असभ्यता का विरोध नहीं किया, और ना केवल उस दृश्य का हिस्सा बने, बल्कि स्वयं भी अपने कटु शब्दों द्रोपदी को प्रताड़ित किया. यही कारण कर्ण की महानता को कमतर बनाता है.
महर्षि दधीचि के अतिरिक्त सभी दान दाता राज- पाट के स्वामी थे. और उनके पास दान करने के लिए पहले से पहले अकूत संपदा थी. किन्तु दधीचि महर्षि थे. संसार में सभी जीवों को अपना जीवन अतिप्रिय होता है. कर्ण और राजा बलि ने संपदाओं का दान किया जबकि महर्षि दधीचि ने मानवता के कल्याण के लिए स्वयं की जीवित समाधि बनाकर अपनी अस्थियाँ तक दान कर दीं. इसलिए दधीचि का दान सर्वाधिक महान है.