महाभारत से जुड़ी हर घटना, हर पात्र की कुछ न कुछ खासियत ज़रूर थी. कौरव और पांडव दोनों ही बहुत शक्तिशाली थे, लेकिन पांडवों का बल विशेष था, क्योंकि उनमें से हर एक को किसी न किसी विद्या में महारत हासिल थी. जैसे महाबली भीम गदा चलने में निपुण थे, तो वहीँ अर्जुन बहुत बड़े धनुर्धारी थे. शब्दभेद भी था उनके पास, यानी एक बार अपने बाण को आदेश दिया तो वो लक्ष्य भेदकर ही आता था. कहते हैं उनका धनुष ही इतना भारी था कि, उसपर महाबली भीम और भगवान श्रीकृष्ण के अलावा और कोई भी प्रत्यंचा नहीं चढ़ा सकता था. अपने उसी धनुष के साथ भारी भरकम तलवार उठाये वो अपने बनवास काल में इधर उधर भ्रमण करते रहे. अर्जुन के बारे में कहा जाता है कि, वो दोनों हाथों से एक साथ धनुष बाण चला सकते थे. अपने अचूक निशाने के लिए उनकी ख्याति थी, और एकाग्रता के इतने धनी कि, अँधेरे से भी जीत कर सकते थे, और निद्रा पर विजय प्राप्त करना उन्हें भली भांति आता था.
कहा जाता है कि, अर्जुन से ज्यादा तो नहीं लेकिन उनकी बराबरी के कुछ धनुर्धर उस समय ज़रूर थे, जिनमे भीष्म पितामह का नाम भी शामिल है. पर समय के साथ भीष्म पितामह वृद्ध हो चुके थे. और उनके बाणों की काट अर्जुन के पास थी, पर भीष्म पितामह के पास अर्जुन के बाणों की काट नहीं थी, हालांकि उन्हें पराजित भी नहीं किया जा सकता था. पर अर्जुन की विधा अपार थी. यहाँ तक कि, गुरु द्रोण ने अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ बनाने के लिए खुद से भी ज्यादा सक्षम बना दिया था. और महारथी कर्ण भी अर्जुन का मुकाबला ज्यादा नहीं कर सकते थे. क्योंकि एक तो वो अधर्म का साथ दे रहे थे, और उनके मन में अर्जुन के लिए बहुत ज्यादा ईर्ष्या थी, जो उनकी एकाग्रता को कम कर रही थी. इसीलिए अर्जुन से महान धनुर्धर उस युग में और दूसरा कोई नहीं था.