महाभारत का युद्ध सिर्फ उस समयकाल के लिए ही नहीं बल्कि आगे वाली मनुष्य की समस्त पीढ़ियों के लिए एक बड़ी सीख है. राजकुमार दुर्योधन और उसके मामा गंधार नरेश शकुनी ये दोनों महाभारत के वो किरदार थे, जिनके आस पास पूरी कहानी रची गई, या फिर ये कह सकते हैं, महाभारत होने का मुख्य कारण ही ये दोनों ही थे. महाराज धृतराष्ट्र और महारानी गांधारी का पुत्र दुर्योधन बहुत बलशाली था. गांधारी स्वयं भगवान शिव की बहुत बड़ी भक्त थीं. गांधार देश के राजा सुबल की पुत्री गांधारी का विवाह जब महाराज धृतराष्ट्र के साथ हुआ तो उनका भाई शकुनी इस बात से बहुत गुस्से में था. उसे लगा कि, उसकी बहन के साथ अन्याय हुआ है, और उसने इसके लिए भीष्म पितामह को ज़िम्मेदार मानते हुए इस बात का बदला लेने का प्रण लिया. और अपने भांजे दुर्योधन को राजपाट दिलवाने के लिए पूरी जिंदगी साजिश करता रहा.
कहते हैं कि, शिव भक्त होने की वजह से भगवान शिव ने गांधारी को सौ पुत्र होने का वरदान दिया था. और जब उनके पहले पुत्र दुर्योधन का जन्म हुआ तो एक बड़ा अपशकुन हुआ था, दुर्योधन ने पैदा होते ही बोलना शुरू कर दिया था, जो अच्छा संकेत नहीं माना जाता था, उसी समय राज्य के विद्वान लोगों ने उस बालक का त्याग करने के लिए कहा था. यहाँ तक कि, कई विद्वानों के साथ विदुर ने भी ये कहा था कि, यदि कौरव वंश की रक्षा करनी है तो महाराज और महारानी अपने पुत्र दुर्योधन का त्याग कर दें, अन्यथा इस राज्य में अनिष्ट होने से कोई नहीं रोक पायेगा. किन्तु पुत्रमोह में महाराज धृतराष्ट्र ने ऐसा नहीं किया.
दुर्योधन की माँ गांधारी महाभारत नहीं होने देना चाहती थीं, और जब श्रीकृष्ण ने पांडवों की तरफ से पांच गाँव मांगे, तो दुर्योधन ने ये प्रस्ताव ठुकरा दिया. लेकिन जब गांधारी को ये बात पता चली तो उन्होंने दुर्योधन से कहा, इस प्रस्ताव को स्वीकार कर ले. मगर स्वभाव से ही जिद्दी दुर्योधन ने अपनी माँ गांधारी के साथ भीष्म पितामह, श्रीकृष्ण, द्रोणाचार्य, और विदुर जैसे महान लोगों की बात भी नहीं मानी, क्योंकि बचपन से ही उसके स्वभाव पर उसके मामा शकुनी की गहरा असर था, और शकुनी चाहता था कि, पांडवों को उस राज्य में से एक सुई की नोंक जितनी जगह भी नहीं मिले, उसके बाद इसका जो परिणाम हुआ वो पूरे संसार के सामने आज भी बहुत बड़ा उदाहरण है.