महर्षि वाल्मीकि अपने तपोबल से अर्जित अनेकानेक दिव्य अस्त्र शस्त्र कुश और लव को प्रदान करते हैं परंतु उससे पहले कुश और लव से संकल्प लेते हैं कि इन अस्त्र शस्त्रों का उपयोग तुम दोनों कभी अपने अहंकार प्रदर्शन अथवा व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए नहीं करोगे, ना ही किसी निर्बल और निर्दोष पर इनका उपयोग करोगे और उसके बाद उन्हें दिव्य शक्तियां प्रदान करते हैं।
– रामायण हर प्रकार की शक्तियों को अर्जित करना भी सिखाती है और उनके प्रयोग का उचित कारण भी सिखाती है।
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गुरुदेव द्वारा प्रशिक्षण पूर्ण होते ही लव कुश सीता माता के पास आकर उन्हें दंडवत प्रणाम करके उनका आशीर्वाद लेते हैं।- यह संस्कार हमें भी अपने जीवन में अपनाना चाहिए कि अपनी किसी भी उपलब्धि पर हम अपने माता पिता, गुरुजनों और अपनों को न भूलें।
आज मानव समाज में ऐसे बहुत से लोग हो गए हैं जो जरा सी उपलब्धि पर माता पिता और परिवार की उपेक्षा करने लगे हैं।
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अयोध्या में सीता जी की सोने की मूर्ति बन कर तैयार होती है जो साक्षात सीता जी का ही प्रतिरूप लग रही है जिसे देख कर रामजी भावविभोर हो जाते हैं। एक चक्रवर्ती सम्राट होकर भी राम जी द्वारा इतने कठिन पत्नी व्रत का पालन संसार के हर पति के लिए पत्नी प्रेम का एक सर्वोच्च उदाहरण है।
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Jai Shriram 🙏
Gepostet von Arun Govil am Mittwoch, 27. Mai 2020
वन में सीता जी एक व्रत का अनुष्ठान करती हैं और अवध में रामजी अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान करते हैं।
एक राजा अथवा शासक का जितना कर्तव्य प्रशासनिक व्यवस्थाएं बनाना है,आर्थिक विकास करना है, सामाजिक विकास करना है उतना ही कर्तव्य है धार्मिक अनुष्ठान करना। दुर्भाग्य से आज सत्ता पक्ष अपने इस महत्वपूर्ण कार्य से विमुख हो गया है। धार्मिक विकास और धार्मिक कार्यों का उत्तरदायित्व मात्र कुछ धार्मिक संस्थाओं तक सिमट कर रह गया है।
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यज्ञ का घोड़ा शत्रुघ्न के संरक्षण में दिग्विजय के लिए छोड़ा जाता है और इस अवसर पर राम जी शत्रुघ्न से कहते हैं-
शत्रुघ्न ! यह पुण्यात्मा अश्व स्वेच्छा से जहां भी जाना चाहे जाने देना। इसके मस्तक पर लिखी चुनौती को पढ़कर यदि कोई इसे रोके अथवा पकड़े तो तुम्हें उससे युद्ध करके इस अश्व को स्वतंत्र कराना होगा।
रघुकुल में हारने की रीत नहीं है इसलिए विजई होकर ही आना। तुम्हारे लौटने तक यह यज्ञ पूजा नित्य प्रति चलेगी और इस दिग्विजयी अश्व के लौटने के पश्चात ही इस यज्ञ की पूर्णाहुति होगी।
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यज्ञ का घोड़ा अपनी इच्छा अनुसार हर दिशा में घूमने लगा। जिस किसी राज्य में वह थोड़ा जाता उस राज्य का राजा, महाराज राम का आधिपत्य स्वीकार करके भेंट उपहार देकर शत्रुघ्न का स्वागत करता और शत्रुघ्न उस भेंट उपहार में आए हुए धन से उस राज्य में सड़कें, तालाब, कुएं, मंदिर आदि बनवाते हुए आगे बढ़ते जाते। इस प्रकार इस यज्ञ का आयोजन किसी राजा पर आधिपत्य जताने के लिए नहीं बल्कि सारी धरती पर एक उत्तम व्यवस्था स्थापित करने के लिए किया गया।
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चारों दिशाओं में सूर्यवंश की विजय पताका फहराता हुआ यज्ञ का घोड़ा कौशल देश में प्रवेश करता है और अयोध्या पहुंचने से पहले लव द्वारा पकड़ लिया जाता है।