उत्तराखंड में चार धाम है जहां पर देश-विदेश से लोग दर्शन करने के लिए आते हैं. यहां पर एक प्राचीन मंदिर है जो ब्रदीनाथ धाम के नज़दीक है. इस मंदिर का नाम पर्णखंडेश्वरी मंदिर है. जानकारी के अनुसार यह मंदिर जोशीमठ से मात्र 5 किलोमीटर दूर है. आपका जब कभी प्लान बने बद्रीनाथ जाने का तब आप इस मंदिर में आकर माता पार्वती जी का आशीर्वाद ज़रूर लें. मां पार्वती का यह मंदिर बद्रीनाथ धाम पहुंचने से पहले आता है. तो जब भी मौका लगे करिए माता पार्वती और शिव स्वरूप भगवान बद्रीनाथ के दर्शन. इस मंदिर के बारे में स्कंद पुराण में भी चर्चा की गई है.
शिवजी को प्राप्त करने के लिए यहाँ किया था तप
बद्रीनाथ धाम के एक पंडित बताते हैं कि बहुत साल पहले देवी सती जी ने दक्ष के यज्ञ कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए थे. फिर कुछ समय बाद इनका जन्म हिमालय और मैना देवी की पुत्री के रूप में हुआ. यहां पर इनका नाम पार्वती रखा गया. मान्यता है कि यहां पर माता पार्वती ने शिवजी को पाने के लिए तप किया था.
यत्र पूर्वं महादेवी तपः परममास्थिता।
पर्णखण्डाशना भूत्वा बहुवर्षसहस्त्रकम्।।
(स्कंदपुराण, केदारखंड, अध्याय 58, श्लोक 36)
इस श्लोक का अर्थ यह है कि यही वो स्थान है जहां देवी जी ने बैठकर सहस्त्रवर्षों तक भगवान शिव की प्राप्ति के लिए तपस्या की थी. आज इस स्थान को माँ पर्णखंडेश्वरी के नाम से जाना जाता है.
तदारभ्य महत्पुण्यं बभूव वरवर्णिनि।
पर्णखण्डाशना देवी जाता दैवतपूजिता।।
(स्कंदपुराण, केदारखंड, अध्याय 58, श्लोक 37)
ऊपर बताए गए श्लोक का अर्थ यह है कि तपस्या के पहले चरण में माता पार्वती ने पत्ते खाकर तप किया था. इसलिए तब से इस मंदिर का नाम पर्णखंडेश्वरी पड़ा. और फिर तप के अंतिम चरणों में पार्वती जी ने पत्तों को भी खाना बंद कर दिया. कहते हैं कि इसके बाद से माता का नाम अपर्णा पड़ा. और उसी समय से इस स्थान पर माँ पर्णखंडेश्वरी की पूजा होती है.