23 साल की उम्र में कह दिया जिंदगी को अलविदा, गाँधी से ज्यादा पसंद करते थे लोग भगतसिंह को

‘दिल से निकलेगी न मर कर भी वतन की उल्फ़त, मेरी मिट्टी से भी ख़ुशबू-ए-वफ़ा आएगी’, ये पंक्तियाँ उस महान शख्स की हैं, जो 23 साल की उम्र में अपने देश की आदाजी के लिए हँसते हँसते कुर्बान हो गया. 28 सितंबर, 1907 को लायलपुर ज़िले के बंगा में (अब पाकिस्तान में) में जन्म लेकर सरदार भगत सिंह ने इस देश की मिट्टी के लिए अपना क़र्ज़ और फ़र्ज़ ऐसा चुकाया कि, दुनिया देखती रह गई.

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कहते हैं जीवन अनमोल होता है और एक बार मिलता है, पर बहुत कम लोग ऐसे होते हैं दुनिया में, जो जीवन की सार्थकता सिद्ध कर जाते हैं. शहीद भगतसिंह अपने पीछे क्रांति और निडरता की वह विचारधारा छोड़ गए जो आज तक युवाओं को प्रभावित करता है. आज भी भगत सिंह की बातें देश के युवाओं को प्रेरणा देती हैं.

हालांकि यह बहस भी साथ-साथ चलती रहती है कि भगत सिंह जिन्होंने महज़ 23 साल की उम्र में अपनी जान देश के लिए दे दी, इस देश के इतिहास में उनकी इस कुर्बानी को वो तवज्जो नहीं मिली, जिसके वो हक़दार थे. उन्होंने तो देशभक्ति के ज़ज्बे में अपनी जान की बाजी लगा दी, और उनकी किसी से कोई अपेक्षा नहीं थी, वो तो बस इस देश को आज़ाद देखना चाहते थे. पर ये फ़र्ज़ तो उनके नहीं होने के बाद हम सबका था कि, उन्हें दूसरे स्वतंत्रता सेनानियों की तरह पहली पंक्ति में वह स्थान मिलना चाहिए था, जो उन्हें कभी नहीं मिला.

उन दिनों आज़ादी कि लड़ाई में देश के युवा बढ़ चढ़कर शामिल हो रहे थे. भारत के युवा, सरदार भगतसिंह की विचारधारा से बहुत प्रभावित हुए थे. और वो उनकी तरह देश के नाम कुर्बान होने के लिए आज़ादी कि जंग में कूद पड़े थे. भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु इन तीनों दिलेर नौजवानों के नाम देश की हवाओं में फिजाओं में हर तरफ गूँज रहे थे.

कहा जाता है, जब 1931 में जब भगत सिंह को फांसी दी गई थी तब तक उनका कद भारत के सभी नेताओं की तुलना में अधिक हो गया था. पंजाब में तो लोग महात्मा गांधी से ज्यादा भगत सिंह को पसंद करते थे. यही वजह है कि भगत सिंह को फांसी मिलने के बाद गांधी जी को भारी विरोध का सामना करना पड़ा.

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आज इस घटना को लगभग 90 साल हो चुके हैं. मगर सरदार भगत सिंह हमारे देश के युवाओं के लिए आज भी आदर्श हैं. उन्होंने हमें यही सिखाया कि, गलत का विरोध करो, और अगर अपनी बात नहीं मानी जाती तो विद्रोह करो, ताकि हम अपने हक की लड़ाई लड़ सकें. अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें झुकाने की, उनकी विचारधारा को दबाने की बहुत कोशिश की, पर वो कामयाब नहीं हो सके. आज हम सब आज़ाद हैं, खुली हवा में सांस ले पा रहे हैं. अपनी बात कहने की आज़ादी है हमें, पर इसके पीछे बहुत लोगों की कुर्बानियां हैं. भारत के इतिहास में सरदार भगतसिंह का नाम हमेशा अमर रहेगा. और वो हमारे मन में सदैव जिंदा रहेंगे. इस देश की मिट्टी के महान सपूत सरदार भगतसिंह की जयंती पर उन्हें शत शत नमन.