रामायण के युद्ध प्रसंगों में मेघनाथ द्वारा, और निर्णायक युद्ध के समय रावण और राम जी द्वारा जिन रथों का उपयोग हुआ है उनकी क्षमता और कार्यशैली देखकर हमें यह मान लेना चाहिए कि उस समय का विमान विज्ञान हमारे आज के विमान विज्ञान से कहीं अधिक उन्नत और घातक था।
अब तक के सबसे भयानक युद्ध के बाद राम जी के हाथों रावण का अंत होता है और सारे ब्रह्मांड में खुशी की लहर दौड़ जाती है।
रावण जैसा बुद्धिमान ज्ञानवान बलवान धनवान उस समय संसार में कोई नहीं था फिर भी पाप और अधर्म के पथ पर चलने के कारण वह एक भयानक दर्दनाक मौत मारा गया।
स्वार्थ या अहंकार के लिए पाप अधर्म भ्रष्टाचार अत्याचार करने वाले हर इंसान को इस प्रसंग से सीख लेनी चाहिए कि बुरे काम का नतीजा सिर्फ और सिर्फ बुरा होता है।
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रावण वध की इस अभूतपूर्व उपलब्धि पर लक्ष्मण जी सहित सब राम जी को बधाई देते हैं और कहते हैं कि रावण पर राम की विजय हुई तो राम जी कहते हैं– ये विजय केवल राम की नहीं, तुम सब की है। सबकी सहायता से ही राम ये युद्ध जीत सका,ये जीत तुम सब की है।
अपने हर सेवक, हर सैनिक को बराबर का श्रेय देकर राम ने हर सामर्थ्यवान को एक संदेश दिया है कि उपलब्धि कितनी भी बड़ी हो परंतु उसका श्रेय उस उपलब्धि से जुड़े हर सहयोगी को मिलना चाहिए।
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Jai Shriram 🙏
Gepostet von Arun Govil am Sonntag, 7. Juni 2020
मंदोदरी आदि के हृदय विदारक करुण विलाप के बीच रावण के नाना माल्यवान आत्मसमर्पण करते हुए सारी लंका का राज्य और राजकोष राम जी को समर्पित करके उनसे निवेदन करते हुए कहते हैं आज से लंका और लंका के निवासी आपकी अयोध्या के अधीन रहेंगे,बची हुई प्रजा पर आप की दया दृष्टि बनी रहे प्रभु।
राम जी कहते हैं-
माल्यवान जी यह धरती आपकी है और आपकी ही रहेगी, किसी की धरती पर बलपूर्वक अधिकार करने का ना हमारा धर्म है ना हमारी नीति है। हम तो पापियों को दंड देने के लिए ही धनुष बाण धारण करते हैं। लंका वासियों को अपने आधीन करके परतंत्र बनाने और लंका का राज्य हड़प कर उस पर अपनी सत्ता जमाने के लिए हमने युद्ध नहीं किया। रावण के अधर्म अनीति और अत्याचार के कारण बाध्य होकर हमें यह युद्ध करना पड़ा। लंका, लंका वासियों की ही है उस पर उनका ही आधिपत्य रहेगा अयोध्या का नहीं। हम युद्ध से पहले ही महाराज विभीषण को लंका का राजा घोषित कर चुके हैं।
रावण के पार्थिव शरीर को सादर प्रणाम करके उस महात्मा की सद्गति की प्रार्थना करके, माल्यवान और विभीषण से पूरे राचोचित सम्मान के साथ रावण का अंतिम संस्कार करने का अनुरोध करते हैं।
यह है राम का विशाल हृदय उदार चरित्र और लोभ लालच से सर्वथा विहीन आचरण। जिस लंका के वैभव का लोभ तीनों लोकों को लालायित करता है उसे राम जी ने बिल्कुल निष्काम भाव से विभीषण को दे दिया।
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सीता जी को सम्मान सहित राम जी के पास लाने के लिए विभीषण सुग्रीव हनुमान आदि अशोक वाटिका जाते हैं।
सुंदर पालकी सजाकर सीता जी राम के सम्मुख लाई जाती हैं और उसके बाद अग्नि परीक्षा का हृदय विदारक दुःसह प्रसंग न कहा जा सकता है ना ही समझा जा सकता है। सीताराम की इस रहस्य लीला को बड़े बड़े ज्ञानी ध्यानी और देवता भी नहीं समझ सके तो उस समय के वर्तमान मानव कैसे समझ पाते।
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अंततः वह दीर्घ प्रतीक्षित पल उपस्थित होता है जब श्री सीताराम जी का पुनर्मिलन होता है दोनों एक साथ सब को दर्शन देकर तृप्त करते हैं।