बाली और सुग्रीव के सन्दर्भ में राम जी ने कहा– जिस घर में भाई भाई आपस में सच्चे प्रेम के साथ इकट्ठे रहते हों ऐसे घर को ही धरती का स्वर्ग कहते हैं। वहम कितने अहम रिश्तों को नष्ट कर देता है इसका एक प्रमाण है बाली और सुग्रीव का रिश्ता। दोनों सगे भाई थे दोनों में बहुत अनन्य प्रेम था परंतु एक वहम ने दोनों को एक दूसरे का घोर दुश्मन बना दिया।
एक भ्रम के कारण किष्किंधा की प्रजा ने बाली को मरा हुआ मानकर सुग्रीव को वहां का राजा बना दिया और बाली उस विकट परिस्थिति से जीतकर वापस आया तो सुग्रीव को राजा बना देखकर बिना विचारे उस पर क्रोधित हो गया और उसे मार कर भगा दिया। यहां भी क्रोध में आकर बिना विचार किए बिना सच्चाई जाने किसी के साथ कोई दुर्व्यवहार करने से बचने की सीख मिलती है।
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संकट में पड़े अपने मित्र सुग्रीव की सहायता के लिए राम ने बाली को मारने का वचन दे दिया। रामजी ने कहा–सिबि दधीचि हरिचंद नरेसा
सहे धरम हित कोटि कलेसा। शिबि, दधीचि, हरिश्चंद्र आदि मेरे पूर्वज राजाओं ने धर्म के लिए करोड़ो कष्ट सहे और उन्हीं का वंशज यह राम आज आप सबके सामने यह प्रतिज्ञा करता है कि कल सूर्यास्त से पहले महाराज सुग्रीव को उनका राज्य और उनकी पत्नी दोनों प्राप्त हो जाएंगे और वो अहंकारी बाली अपने अंत को प्राप्त हो चुका होगा।
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बाली रोज सवेरे सूर्योदय से पहले लगभग पूरी धरती का एक चक्कर लगाता था। समुद्र मंथन के समय उसने अकेले ही पूरे मंदराचल पर्वत को घुमा दिया था। युद्ध में जो भी उसके सामने आता था उसका आधा बल बाली में चला जाता था।
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मित्र को दिया वचन निभाने के लिए और बाली को मिले वरदान का मान रखने के लिए भगवान श्री राम ने बाली पर पेड़ की आड़ में छुपकर प्रहार किया।
बाली ने मरने से पहले भगवान से पूछा कि ‘आपने मर्यादा अवतार होकर भी छिपकर वार करने का पाप क्यों किया?’
रामजी ने उसे समझाया-
अनुज बधू भगिनी सुत नारी
सुन सठ कन्या सम ये चारी
इन्हहिं कुदृष्टि विलोकइ जोई
ताहि बधे कछु पाप न होई।।
पुत्र की पत्नी, अनुज की पत्नी और बहन के साथ अपनी कन्या के समान पवित्र सम्बन्ध रखना पारिवारिक सामाजिक तथा नैतिक धर्म है।
हे वानर राज तुमने जो पाप किया है उसके अनुसार तुम्हारा वध सर्वथा धर्म के अनुसार उचित माना जाएगा।
इस प्रकार राम के ज्ञान वचन सुनकर बाली को अपनी भूल का आभास होता है और वह क्षमा याचना करता है।