बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी एशिया का सबसे बड़ा प्राचीन विश्वविद्यालय

बरसों से देश के छात्र-छात्राओं का यह सपना रहता है कि वह एशिया के सबसे बड़े काशी हिंदू विश्वविद्यालय में पढ़ाई करें। भारत के पुराने विश्वविद्यालयों में वाराणसी के काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का नाम काफी सम्मान के साथ लिया जाता है। यह एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है। इसे बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) भी कहा जाता है। इस विश्वविद्यालय की स्थापना महामना पंडित मदन मोहन मालवीय ने सन् 1916 में बसंत पंचमी के दिन की थी। दरभंगा के महाराजा रामेश्वर सिंह ने विश्वविद्यालय की स्थापना में जरूरी संसाधनों की व्यवस्था दान में दी थी। इस विश्वविद्यालय की स्थापना में डॉ. एनी बेसेन्ट द्वारा स्थापित और संचालित सेंट्रल हिंदू कॉलेज की भी महत्वपूर्ण भूमिका थी। फिलहाल विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय महत्व के संस्थान का दर्जा मिला हुआ है।

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इस विश्वविद्यालय के दो कैंपस हैं। मुख्य परिसर लगभग 1300 एकड़ में वाराणसी में स्थित है। यह भूमि काशी नरेश ने दान में दी थी। मुख्य परिसर में छह संस्थान, 14 संकाय और लगभग 140 विभाग हैं। विश्वविद्यालय का दूसरा परिसर मिर्जापुर जनपद में बरकछा नामक जगह में 2700 एकड़ में स्थित है। 75 छात्रावासों के साथ यह एशिया का सबसे बड़ा आवासीय विश्वविद्यालय है, जिसमें 34 देशों के विद्यार्थी सहित 30 हजार से ज्यादा छात्र पढ़ते हैं।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के शिलान्यास समारोह में देश के अनेक गवर्नर, राजे-रजवाड़ों तथा सामंतों ने हिस्सा लिया था। पं. मदनमोहन मालवीय के बुलावे पर अनेक शिक्षाविद्, वैज्ञानिक एवं समाजसेवी भी इस अवसर पर उपस्थित थे। महात्मा गांधी भी विशेष निमंत्रण पर पधारे थे। अपने वाराणसी आगमन पर गांधीजी ने डॉ. बेसेंट की अध्यक्षता में आयोजित सभा में अपना वह ऐतिहासिक भाषण दिया, जिसमें उन्होंने ब्रिटिश सरकार और हीरे-जवाहरात तथा सरकारी उपाधियों से लदे देशी रियासतों के शासकों की घोर आलोचना की थी।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय में शिक्षण कार्य, 1 अक्टूबर 1917 से शुरू हुआ। 1916 में आई बाढ़ के कारण स्थापना स्थल से हटकर कुछ पश्चिम में 1300 एकड़ भूमि में निर्मित वर्तमान विश्वविद्यालय में सबसे पहले इंजीनियरिंग कॉलेज का निर्माण हुआ। इसके बाद आर्ट्स कॉलेज एवं साइंस कॉलेज स्थापित किया गया। 1921 से विश्वविद्यालय की पूरी पढ़ाई नए भवनों में शुरू हुई। विश्वविद्यालय का औपचारिक उद्घाटन 13 दिसंबर 1921 को प्रिंस आफ वेल्स ने किया।

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यह बड़े गौरव की बात है कि सुंदरलाल, पं. मदनमोहन मालवीय, पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एस. राधाकृष्णन, डॉ. अमरनाथ झा, आचार्य नरेंद्र देव, डॉ. रामस्वामी अय्यर, पूर्व केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ. त्रिगुण सेन जैसे मूर्धन्य विद्वान यहां के कुलपति रह चुके हैं। वर्ष 2015-16 में विश्वविद्यालय की स्थापना का शताब्दी वर्ष था, जिसमें विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम, उत्सव व प्रतियोगिताएं आयोजित की गईं। विश्वविद्यालय के मुख्य परिसर में भगवान विश्वनाथ का एक विशाल मंदिर भी है। इस तरह शिक्षा के साथ ही यह आस्था का भी केंद्र है।