भारत के गौरवशाली किले: महाभारत काल से भी है बांधवगढ़ किले का सम्बन्ध

भारत में पुराने किलों की कोई कमी नहीं हैं। कुछ किले तो इतने पुराने हैं कि जिनका संबंध रामायण या महाभारत काल से भी जुड़ता दिखाई देता है। ऐसा ही एक किला है बांधवगढ़ का किला, जो कि मध्यप्रदेश में है। यह किला उमरिया जिला और शहडोल संभाग में आता है। एक अनुमान है कि यह किला लगभग 2000 साल पहले बनाया गया था। इस किले का नाम शिवपुराण में भी मिलता है, लेकिन बाद के वर्षों में इस किले को रीवा के राजा विक्रमादित्य सिंह ने बनवाया था।

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इस किले का उल्लेख शिव पुराण के साथ ही पुराने ग्रंथ नारद-पंच में भी मिलता है। किले की सीमा में ही भगवान विष्णु के 12 अवतारों की मूर्तियां हैं, जो कि पत्थरों को तलाशकर बनाई गई हैं। इनमें कच्छप स्वरूप और शेष शैया पर आराम की मुद्रा में भी भगवान विष्णु के दर्शन होते हैं। किले में जाने के लिए मात्र एक ही रास्ता है, जो घने जंगलों से होकर गुजरता है। बताया जाता है कि किले से एक छुपा हुआ रास्ता रीवा के किले से भी जाकर मिलता है। इसमें राजा गुप्त सभा, गुप्त बातें और किलों की गुप्त विशेषताओं के बारे में जानकारी सुरक्षित रखते थे, ताकि किसी अन्य व्यक्ति को कोई महत्वपूर्ण जानकारी न मिल सके। राजा गुलाब सिंह और उनके पिता मार्तण्ड सिंह जूदेव इसका इस्तेमाल खुफिया किले के रूप में करते थे। यहां कई गुप्त रणनीतियां बनाई जाती थीं।

किले की दीवारे साधारण लाल पत्थर से बनी हैं। बरसात के दिनों में हरियाली छा जाने से किले की सुंदरता और अधिक बढ़ जाती है। बांधवगढ़ को नेशनल पार्क और सुंदर जीव- जंतुओं को देखने के स्थान के तौर पर सभी जानते हैं, लेकिन ये बहुत ही कम लोगों को मालूम होगा कि बांधवगढ़ का नाम यहां मौजूद एक पहाड़ के नाम पर ही रखा गया है और इस पहाड़ पर ही किला है जो कि हजारों साल पुराना है। रीवा रियासत के महाराज राजा व्याघ्रदेव द्वारा इसके निर्माण और जीर्णोद्धार की जानकारी सामने आती है। यह भी बताया जाता है कि रीवा के राजा मार्तण्ड ने किले के ही पास सफेद शेर को पकड़ा था, जो अपने आप में बहुत बड़ी बात हुआ करती थी। उस शेर का नाम मोहन था।

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इस किले के अंदर पानी से सदा भरे रहने वाले सात ऐसे तालाब हैं जो अब तक भीषण गर्मी में भी कभी सूखे नहीं हैं। किसी भी मौसम में इनमें पानी लबालब भरा रहता है। किला अत्यंत प्राचीन होने के कारण यह पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है और अब यहां की देखरेख शासन द्वारा की जाती है। घने जंगल और कठिन रास्ता होने की वजह से अब किले के अंदर जाने की खुली छूट नहीं है। यहां विशेष अनुमति लेकर ही पहुंचा जा सकता है। बांधवगढ़ जाने के लिए सबसे नजदीक विमानतल जबलपुर में है, जो 164 किलोमीटर की दूरी पर है। बांधवगढ़ रेल मार्ग से भी जबलपुर, कटनी और सतना से भी जुड़ा है।

इस किले की सबसे बड़ी बात यह है कि इस पर कोई भी आक्रामण करने वाला विजय प्राप्त नहीं कर सका, मतलब यह किला अजेय है। यहां पहुंचने की भले ही आसानी से अनुमति न मिलती हो, लेकिन आज भी ऐसे कई कारण हैं जिसकी वजह से यह किला लोगों के आकर्षण का केंद्र रहा है।