आयुर्वेद में बरगद के पेड़ को कहा जाता है सर्वोत्तम औषधि

हमारे आसपास या किसी मंदिर परिसर में बरगद का पेड़ आसानी से मिल जाता है। बरगद के पेड़ को वट वृक्ष या बड़ का पेड़ भी कहा जाता है। हिंदू धर्म में बरगद का पेड़ बहुत ही पवित्र माना जाता है। महिलाएं बरगद की पूजा करती है। बरगद का पेड़ विशाल, घना और फैला हुआ होता है। यह लंबे समय तक जीवित रहने वाला पेड़ है। इसमें कई औषधीय गुण पाए जाते हैं। इसका इस्तेमाल कई तरह के रोगों और संक्रमण के इलाज के लिए किया जाता है। आयुर्वेद में बरगद के पेड़ को एक सर्वोत्तम औषधि कहा गया है।

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नाक से खून आने की समस्या से जूझ रहा रोगी अगर बरगद की छाल का लस्सी के साथ सेवन करे तो उसे लाभ मिलता है। साथ ही इसके पत्तों का चूर्ण बनाकर उसका शहद और चीनी के साथ सेवन करने से भी लाभ मिलता है। बरगद के दूध को सरसों के तेल में मिलाकर उसकी कुछ बूंदे कान में डालने से कान की फुंसी ठीक हो जाती है। बरगद की जड़ो से बने चूर्ण का जीरा, इलायची और दूध के साथ सेवन करने से पेशाब में जलन की समस्या से छुटकारा मिलता है। साथ ही इसकी जटाओं के रेशे को पीसकर लगाने से दाद-खाज, खुजली से आराम मिलता है।

बरगद की छाल से बना काढ़ा पीने से मधुमेह के रोगियों को लाभ मिलता है। बरगद के दूध, कपूर और शहद के मिश्रण को आंखो पर लगाने से आंखो से जुड़े रोग दूर होते है। दांतों से जुड़े रोगों को दूर करने में भी बरगद काफी उपयोगी है। उसके दूध और शहद के मिश्रण को दांतों और मसूड़ों पर लगाकर कुछ देर बाद कुल्ला करने से दांत मजबूत होते है। साथ ही मुंह की दुर्गंध दूर करने के लिए भी बरगद का उपयोग किया जाता है। चेहरे की खूबसूरती बढ़ाने व मुंहासे और झाई को दूर करने में बरगद उपयोगी है। इसके पत्तों और मसूर का मिश्रण लगाने से मुंहासे व झाई दूर होती हैं।

बरगद का इस्तेमाल करने से पहले इस बात का ध्यान रखे कि पहले चिकित्सक की सलाह जरूर लें। बरगद के काढ़े का सिर्फ 50-100 मिलीग्राम मात्रा में सेवन ही करना चाहिए। साथ ही इसके फल से बने चूर्ण का 3-6 ग्राम और दूध की 5-10 बूंद का ही सेवन करना चाहिए।