जब दुष्ट व्यक्ति की संगति से सन्यासी का जीवन बना गया नरक

धार्मिक शास्त्रों में कहा गया है कि दुष्ट व्यक्ति से सदैव दूरी बनाकर रखना चाहिए। क्योंकि दुष्ट व्यक्ति को कितनी ही अच्छी संगती में रखा जाए वह अच्छा नहीं बन सकता। उसके साथ रहने से हमें जरूर नुकसान हो सकता है। यहाँ एक कहानी के माध्यम से इस बात को समझाने का प्रयास किया गया है.

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एक बार गंगा नदी के किनारे सांप की प्रवृत्ति का दुष्ट व्यक्ति रहता था। उसके पास एक मणि थी, जिसकी मदद से वह अपना स्वरूप बदल सकता था। उस समय गंगा नदी के तट पर दो सन्यासी भी एक कुटिया में रहते थे। दोनों आपस में सगे भाई थे। एक दिन दुष्ट व्यक्ति गंगा नदी के तट पर विचरण कर रहा था। इस दौरान उसकी नजर कुटिया में बैठे छोटे सन्यासी पर पड़ी। दुष्ट व्यक्ति मनुष्य के स्वरूप में सन्यासी के पास पहुंचा और बातचीत करने लगा। पहली ही मुलाकात में सन्यासी और दुष्ट व्यक्ति के बीच मित्रता हो गई। सन्यासी को पता ही नहीं चला कि जिसे वह अपना मित्र समझ रहा है वह सांप की प्रवृत्ति का दुष्ट व्यक्ति है। सन्यासी और दुष्ट व्यक्ति हर एक-दो दिन में मिलने लगे।

एक दिन जब दोनों मिले तो दुष्ट व्यक्ति अपने असली रूप में प्रकट हुआ और सन्यासी को अपनी मणि भी दिखाई। दुष्ट व्यक्ति को असली रूप में देख सन्यासी बहुत डर गया। उसका खाना-पीना भी छूट गया। अपने छोटे भाई को डरा-डरा सा रहता देख बड़े भाई ने उससे पूछा कि क्या हुआ तू इतना डरा-डरा सा क्यों लग रहा है। इस पर छोटे भाई ने अपने बड़े भाई को पूरी घटना के बारे में बताया।

छोटे भाई की बात सुनकर बड़े भाई ने कहा कि तुम्हे उस दुष्ट व्यक्ति से दूरी बनाकर रखना चाहिए। किसी भी दुष्ट व्यक्ति से दूरी बनाए रखने का सबसे अच्छा तरीका है उससे उसकी सबसे प्रिय वस्तु मांग लो। इसलिए अब जब भी तुम्हे वह दुष्ट व्यक्ति मिले तुम उससे उसकी मणि मांग लेना। सन्यासी को अपने बड़े भाई का सुझाव अच्छा लगा और जब अगली बार दुष्ट व्यक्ति उससे मिला तो सन्यासी ने दुष्ट व्यक्ति से उसकी मणि मांग ली। हालांकि दुष्ट व्यक्ति ने सन्यासी को मणि नहीं दी और बहाना बनाकर वहां से चला गया। इसके बाद एक-दो बार और सन्यासी व दुष्ट व्यक्ति की मुलाकात हुई। हर बार सन्यासी दुष्ट व्यक्ति से उसकी मणि मांग लेता। इससे दुष्ट व्यक्ति स्वयं ही सन्यासी से दूर-दूर रहने लगा।