अहंकार मनुष्य का शत्रु होता है, जो उसे पतन के रास्ते पर लेकर जाता है। अहंकार के कारण ही महाज्ञानी, पराक्रमी और बलशाली रावण का अंत हुआ। अहंकार के कारण ही हम खुद को सर्वश्रेष्ठ और सामने वाले को हीन मानने लगते हैं। इसका हमें बाद में नुकसान भी होता है। इसलिए कहा जाता है कि हमें कभी भी अहंकार नहीं करना चाहिए। बौद्ध धर्म के संस्थापक भगवान गौतम बुद्ध ने भी जातक कथा के माध्यम से अहंकार से होने वाले नुकसान के बारे में समझाया है।
जातक कथा है कि किसी समय एक नगर में कुछ साधु रहते थे। उनमें से एक साधु बड़ा घमंडी था। वह अपने आप को सबसे श्रेष्ठ साधु समझता था। वह अपने साथी साधुओं का कभी सम्मान नहीं करता था और हमेशा अहंकार में घूमता रहता था। एक दिन घमंडी साधु को किसी ने भिक्षा में चमड़े की धोती दे दी। चमड़े की धोती पहनकर साधु में और भी अहंकार आ गया। वह सोचने लगा जैसे पूरी दुनिया उसके सामने नतमस्तक हो गई है।
एक बार की बात है कि अहंकारी साधु नगर में भिक्षा मांग रहा था। तभी साधु के सामने जंगली भेड़ आकर खड़ा हो गया। साधु ने उस समय चमड़े की धोती पहनी हुई थी। साधु की धोती को देखकर भेड़ अपना सर नीचे करके अपना एक पैर जमीन पर रगड़ने लगा। लेकिन साधु अपने अहंकार के नशे में चूर था। उसे लगा कि वह सबसे श्रेष्ठ साधु है, इसलिए भेड़ भी उसे देखकर उसके सामने अपना सर झुका रहा है। तभी वहां से एक राहगीर गुजर रहा था। उसने देखा कि चमड़े की धोती देखकर भेड़ भड़क गया है और वह साधु पर हमला करने वाला है।
राहगीर ने साधु को आगाह किया कि हे सन्यासी कृपया आप भेड़ पर विश्वास मत करो और अपनी जान बचाओ वरना यह भेड़ आपके प्राण ले लेगा। लेकिन साधु को अपने श्रेष्ठ होने का इतना घमंड था कि उसने राहगीर की बात पर ध्यान ही नहीं दिया। उसे सचमुच लग रहा था कि भेड़ सर झुकाकर उसका अभिवादन कर रहा है। इस बीच जंगली भेड़ ने तेजी से साधु पर हमला कर दिया। भेड़ का हमला इतना तेज था कि उसी समय साधु के प्राण निकल गए।