मनुष्य के रूप में जन्म लेना ही है संघर्ष का दूसरा नाम

मनुष्य के रूप में जन्म लेना ही संघर्ष का कारण बन जाता है. अब इस संघर्ष के मायने व्यक्ति पर निर्भर करते हैं कि, वो जीवन को किस तरह देखता है. जन्म लेकर इंसान अपने जीवन यापन के लिए बहुत कुछ सीखता है और करता है. और इसी क्रम में उसका ये संघर्ष शुरू होता है. अब ये आवश्यक नहीं है कि, किसने किस परिवार में जन्म लिया है. वो महल में पैदा हुआ है झोंपड़े में, चाहे उसने राजा के घर में जन्म लिया हो या रंक के घर, सब कुछ इंसान के अपने कर्म, भाग्य, पूर्वजन्म में किये गए कर्मों के आधार पर तय होता है. हाँ ये तय है कि, समय सदैव एक जैसा नहीं रहता. इसलिए हर समय आगे बढ़ना ही होता है. क्योंकि निरंतरता को रोका नहीं जा सकता, वही तो गति है. और उसी गति में हर आने वाली घटना का आना तय होता है.

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श्रीराम ने अपने पूरे जीवन में जो भी कार्य किये, अगर इंसान उन पर चलने का थोड़ा सा भी प्रयास करे, तो सारी चीजें सहजता से समाप्त हो जायेंगी. अब अगर जीवन में सब कुछ सहज होता तो श्रीराम ने तो एक महान कुल में जन्म लिया था. और अयोध्या के राजा के बेटे ने जितने कष्ट अपने जीवन में उठाये, उतना तो कोई सोच भी नहीं सकता, सुख और वैभव का त्याग करना आसान नहीं होता, जिनके पास नहीं होता, उनकी तो नीयति है, लेकिन होते हुए भी सब छोड़ देना, कितना मुश्किल होता है, ये समझने की आवश्यकता है.

लेकिन श्रीराम ने सम्पूर्ण मानवजाति को ये सिखाया कि, श्रेष्ठ मनुष्य कठिन परिस्थितियों में भी नीति धर्म और अपना कर्तव्य कभी नहीं भूलता. और जो लोग इन सभी मर्यादाओं का पालन करते हैं. वो अपने जीवन में हर परिस्थिति से बाहर निकलने के लिए क्षमतावान होते हैं.