हिंदू धर्म में भाद्रपद पूर्णिमा का विशेष महत्व है, क्योंकि इस दिन से श्राद्ध शुरू होते हैं। इस बार 2 सितंबर को भाद्रपद पूर्णिमा है। भाद्रपद पूर्णिमा के दिन भगवान श्रीविष्णु के सत्यनारायण स्वरूप की पूजा करने का विशेष महत्व है। इस दिन महिलाएं उमा-महेश्वर का व्रत भी रखती है। मान्यता है कि यह व्रत रखने से महिलाओं के जीवन में सुख समृद्धि आती है। जीवन के अंत तक उन्हें पति का साथ मिलता है। इसके बाद वह शिव लोक को प्राप्त करती है और फिर किसी अच्छे कुल में उनका जन्म होता है। मान्यता है कि भगवान श्रीविष्णु ने भी उमा-महेश्वर का व्रत रखा था।
भाद्रपद पूर्णिमा का व्रत करने के लिए सबसे पहले सुबह सभी नित्य क्रियाओं से निवृत्त होकर किसी पवित्र नदी में या पानी में गंगा जल मिलाकर स्नान करें। इसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती को स्नान करवाकर उन्हें बेलपत्र, पुष्प अर्पित करके उन्हें शुद्ध घी का दीपक लगाएं। इसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती को भोग लगाकर शिव चालीसा का पाठ करें। शाम को वापस यही विधि दोहराएं। अंत में उमा-महेश्वर व्रत की कथा को अवश्य सुनें। साथ ही पूरे दिन श्रद्धाभाव से व्रत करें और शाम को पूजा करने के बाद भोजन ग्रहण करें।
मत्स्य पुराण में उमा-महेश्वर व्रत की कथा का उल्लेख किया गया है। प्रसंग है कि एक बार भगवान शिव के दर्शन करने के बाद वापस लौट रहे महर्षि दुर्वासा की मुलाकात भगवान विष्णु से हुई। इस दौरान महर्षि दुर्वासा ने भगवान शिव के द्वारा दी गई माला को भगवान विष्णु को दिया। भगवान विष्णु ने माला लेकर उसे गरुड़ के गले में डाल दिया। इससे महर्षि दुर्वासा क्रोधित हो गए और भगवान विष्णु को श्राप देते हुए कहा कि आपने भगवान शिव का अपमान किया है। इसलिए आपके पास से लक्ष्मी जी चली जाएगी। अब क्षीर सागर भी आपके पास नहीं रहेगा शेषनाग भी आपकी मदद नहीं कर पाएंगे। यह सुन भगवान विष्णु महर्षि दुर्वासा को प्रणाम किया और पूछा कि इससे मुक्त होने का कोई उपाय बताएं। तब महर्षि दुर्वासा ने भगवान विष्णु से कहा कि आप भाद्रपद मास की पूर्णिमा को उमा-महेश्वर का व्रत रखना। इससे आपको लक्ष्मी जी और सारी शक्तियां वापस मिल जाएगी। महर्षि दुर्वासा के कहे अनुसार भगवान विष्णु ने उमा-महेश्वर का व्रत किया। इससे उन्हें सब कुछ वापस मिल गया।