तीन ब्राहमणों में से दो का खाना बना , और 1 ब्राह्मण हुआ दुखी और फिर भगवान धनवंतरि ने…

जानकारी है कि केरल के थोट्‌टूवा गांव में भगवान धनवंतरि की मूर्ति 1000 साल पहले से रखी हुई है. ये गांव जिला अनार्कुलम के पास स्थित है. मंदिर से जुड़े लोगों को कहना है कि भगवान धनवंतरि की मूर्ति यहां भगवान पशुराम ने स्थापित की थी. इसीलिए इन्हें धनवंतरि देव भी कहते हैं. कहा जाता है कि यहां सबसे पहले भगवान धन्वन्तरि की पूजा नांबूदरी नामक ब्राह्मण करते थे. और आपको बता दें कि इस मंदिर का निर्माण लगभग 9वीं शताब्दी में हुआ था. इस मंदिर में भगवान धनवंतरि को कच्चा दूध, मक्खन व कृष्ण तुलसी चढ़ाई जाती है. साथ ही एक जानकारी और देना चाहेंगे कि इस मंदिर में भगवान गणेश, माता भद्रकाली, अयप्पन, और ब्रह्मराक्षस की स्थापना भी की गई थी.

ImageSource

जिन लोगों को शरीर से संबंधित दिक्कतों का सामना करना पड़ता है उनके सभी दुख-दर्द भगवान धनवंतरि दूर कर देते हैं. भगवान धनवंतरि को कृष्ण तुलसी के साथ आर्युवेदिक औषधियां भी चढ़ाना अच्छा माना जाता है. ऊपर की पंक्तियों में हमने पांच शक्तियों के बारे में आपको जानकारी दी है. इनकी पूजा हृदयपूर्वक करने से सारे दोष दूर हो जाते हैं. अगर आप प्रतिदिन ध्यान या मेडीटेशन में बैठते हैं तो आपको वात, पित्त और कफ से छुटकारा मिल सकता है.

आदि शंकराचार्य और नंबूदरी ब्राह्मण से जुड़ा है मंदिर

मंदिर से जुड़े सेवकों का कहना है कि इस मंदिर का इतिहास आदि शंकराचार्य और मलयातुर की पहाड़ियों पर रहने वाले तीन नंबूदरी ब्राह्मण परिवार से जुड़ा है. कहते हैं कि ब्राह्मण के यहां एक बार आदि शंकराचार्य रहने के लिए आए थे. लेकिन उनकी गरीबी की वजह से वे शंकराचार्य को न खाने को कुछ दे पाए न ही ठहरने के लिए जगह दे पाए. इस वजह से उन्हें यहां से खाली हाथ जाना पड़ा.
यह सब देख ब्राह्मणों को बहुत दुख पहुंचा. और फिर प्रायश्चित करने के लिए ब्राह्मणों ने बांस को एकत्रित कर उस पर खाना बनाया. दो ब्राह्मणों का खाना तो बन भी गया, पर 1 ब्राह्मण का खाना बांस जलने की वजह से बन न सका. इससे यह ब्राह्मण दुखी हो गया और थक्कर सो गया . गौर करने वाली बात है कि जिस जगह यह ब्राह्मण सो गया आज उसी जगह पर भगवान धनवंतरि का मंदिर है.

ImageSource

आप तो जानते हैं कि जब भी भक्त परेशानी में होते हैं भगवान उनकी मदद अवश्य करते हैं. यहां पर भगवान धनवंतरि ब्रहामण के सपने में आए और वरदान दिया. और फिर जब सवेरा हुआ तो उस ब्रहामण को कई प्रकार के व्यंजन बने मिले. जानकारी के अनुसार जिस जगह पर वह ब्राहमण सोए थे आज उसी जगह पर भगवान धनवंतरि का मंदिर है. हर वर्ष एकादशी पर भगवान धनवंतरि की विशेष पूजा हर वर्ष मलयालम के वृश्चिक महीने में यानी 16 नवंबर से 15 दिसंबर के बीच आने वाली एकादशी और पुष्प नक्षत्र (16 अप्रैल से 15 मई) पर यहां भगवान धनवंतरि की पूजा बड़ी धूमधाम से की जाती है.