तो इसलिए नहीं लौटीं माता सीता अशोक वाटिका से हनुमानजी के साथ

आमतौर पर यह देखा गया है कि मनुष्य को जीवन में कई मर्यादाओं का पालन करना होता है, लेकिन ये सिर्फ हम पर ही लागू नहीं होती हैं। एक कहावत आपने सुनी होगी, समुद्र भी अपनी मर्यादा नहीं लांघता… मतलब विशाल और ताकतवर समुद्र भी मर्यादाओं का पालन करता है। मर्यादाओं को भगवान ने भी माना है, ऐसे में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम और उनकी पत्नी सीताजी मर्यादाओं का उल्लंघन कैसे कर सकते हैं। माता सीता मर्यादाओं के चलते ही अशोक वाटिका से हनुमानजी के साथ सीधे रामजी के पास नहीं लौटीं, जबकि हनुमानजी उन्हें उसी वक्त वापस लाने की ताकत रखते थे।ImageSource

सबको पता ही है कि हनुमानजी जब माता सीता की खोज करते-करते लंका की अशोक वाटिका पहुंचे, तो वहां उन्हें माता के दर्शन हो गए। इसके बाद हनुमानजी ने लंका दहन किया और फिर जब हनुमानजी ने माता सीता से स्वयं के साथ भगवान राम के पास लौट चलने का आग्रह किया तो उन्होंने चार कारणों से इनकार कर दिया। वैसे हनुमानजी ने भी सीताजी से यही कहा था प्रभु राम ने उन्हें माता को साथ लाने की आज्ञा नहीं दी है, वरना मैं अभी आपको (सीताजी की) अपने साथ ले चलता। गोस्वामी तुलसीदासजी ने रामचरित मानस के सुंदरकांड में लिखा है- अबहिं मातु मैं जाउं लवाई। प्रभु आयुस नहिं राम दोहाई॥ कछुक दिवस जननी धरु धीरा। कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा॥ मतलब- हे माता! मैं आपको अभी यहां से लिवा जाऊं पर श्री रामचंद्रजी की शपथ है, मुझे प्रभु की आज्ञा नहीं है। हे माता! कुछ दिन और धीरज धरो। श्री रामचंद्रजी वानर सेना सहित यहां आएंगे।।

ऐसे चार प्रमुख कारण बताए गए हैं जिनके चलते माता सीता ने हनुमानजी का प्रस्ताव नहीं माना। इसके बाद हनुमानजी उनसे निशानी के तौर पर चूड़ामणि (कंगन) लेकर लौट आए थे। देवी सीता से जब हनुमान ने उनके साथ न चलने का कारण पूछा तो देवी सीता ने जो कारण बताए, उन्हें जानकर हनुमानजी ने कहा था- हे माता! आप धन्य हैं।

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श्रीराम की मर्यादा का मान :
यदि माता सीता हनुमानजी के साथ लंका से चली आतीं तो भगवान श्रीराम की कीर्ति कम होती और उनके अवतार का उद्देश्य भी पूरा नहीं होता। भगवान विष्णु ने रावण और उसके जैसे कई राक्षसों का अंत करने के लिए अवतार लिया था। हनुमानजी का प्रस्ताव स्वीकार करने पर यह नहीं हो सकता था। एक पतिव्रता स्त्री का धर्म अपने पति की कीर्ति बढ़ाना व कुल परंपरा को निभाना है। माता सीता ने इन बातों का ध्यान रखा।

अपमान का बदला :
जिस रघुकुल के राजाओं से देवता भी सहायता मांगते थे, रावण ने उस प्रतापी इक्ष्वाकु वंश की बहू का अपहरण कर बड़ा अपराध किया था। माता सीता महिलाओं के सम्मान का प्रतिनिधित्व कर रही थीं, वह एक राज कन्या थीं। जो उनका अपहरण कर सकता है वह सामान्य महिलाओं के साथ कैसा व्यवहार कर सकता है। देवी सीता रावण के इस कायर व्यवहार के लिए उसे भगवान राम के हाथों प्राणदंड दिलवाना चाहती थीं। वे चाहती थीं रघुकुल की उज्ज्वल कीर्ति कायम रहे और रावण को उसके अपराध का पछतावा हो।

रावण की मुक्ति :
माता सीता जानती थीं कि रावण को वरदान था कि उसकी मृत्यु किसी मनुष्य के हाथों ही होगी। भगवान विष्णु ने रावण का वध करने के लिए ही श्रीराम के रूप में मानव अवतार लिया है। राम-रावण युद्ध नहीं होता तो भगवान राम की कीर्ति अनंत काल तक नहीं रहती। रावण के कर्मों से दूषित लंका को शुद्ध करवाने के लिए भी यह जरूरी था भगवान श्रीराम के चरणों की धूल लंका में पड़े, जिससे वहां धर्म की स्थापना हो सके। इसलिए भी माता सीता ने हनुमानजी का प्रस्ताव मानने से इंकार किया था।

धर्म का पालन :
रामायण सतकोटि अपारा… यानी रामकथा बहुत-सी हैं। इनमें से एक के अनुसार माता सीता ने हनुमानजी के साथ लौटने से इसलिए मना किया, क्योंकि वे अपने पतिव्रत धर्म का पालन कर रही थीं। वाल्मीकि रामायण में बताया गया है कि माता सीता ने कहा कि रावण बलपूर्वक उठाकर लंका ले आया था, उसमें मेरा वश नहीं था लेकिन मैं अपनी मर्जी से किसी अन्य पुरुष के साथ नहीं जा सकती। गोस्वामी तुलसीदास के रामचरित मानस में इस संवाद का उल्लेख नहीं है। उनके अनुसार तो देवी सीता अशोक वाटिका में कहतीं हैं- अजर अमर गुणनिधि सुत होहूं, करऊं बहुत रघुनायक छोहूं।।

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कहने का मतलब यह है कि माता सीता ने हनुमान को अपना पुत्र माना था, फिर भी लोक मर्यादा का पूरा ध्यान रखते हुए उन्होंने उनका आग्रह नहीं माना। तुलसीदासजी ने तो यह भी कहा है कि हनुमानजी के सामने भी यह धर्मसंकट था कि उन्हें भगवान श्रीराम ने सीताजी को वापस लाने की आज्ञा नहीं दी थी, बल्कि पता लगाने को कहा था, ऐसे में वे अपने साथ सीताजी को कैसे ले जा सकते थे। इस प्रकार माता सीता और हनुमानजी दोनों ही अपने धर्म का पालन कर रहे थे।