पवनपुत्र बजरंगवली को संकट मोचक कहा जाता है. क्योंकि वो भक्तों के हर दुःख का निवारण करते हैं. श्रीराम के परमभक्त हनुमानजी के कई स्वरुप हैं, और कहते हैं कि, वो आज भी हमारे आस पास यहीं कहीं मौजूद हैं. और जब भी भक्त सच्चे मन से उन्हने याद करते हैं, वो तुरंत अपने भक्तों की पुकार सुनकर आ जाते हैं. हनुमानजी को परम ग्यानी भी कहा जाता है, लेकिन बहुत कम लोगों को ये पता है कि, उन्होंने ये ज्ञान सूर्यदेव से प्राप्त किया था.
कहा जाता है कि, हनुमानजी के माता पिता केसरी और अंजनी ने अपने पुत्र को ज्ञान प्राप्त करने के लिए सूर्यदेव के पास भेजा था, और हनुमानजी ने सूर्यदेव के पास जाकर उनसे गुरु बनने की प्रार्थना की. इस पर सूर्यदेव ने कहा, मैं तो निरंतर चलायमान हूँ, एक स्थान पर रुकना मेरे लिए संभव ही नहीं, फिर मैं, तुम्हे ज्ञान कैसे दे सकता हूँ?
तब हनुमान जी ने उनसे कहा, आप अपनी गति को कम मत कीजिये, मैं आपके साथ चलते चलते ही ज्ञान प्राप्त कर लूँगा. सूर्यदेव भी इस बात पर सहमत हो गए, उसके बाद इसी प्रक्रिया से हनुमानजी ने सूर्यदेव से शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया, जिसके प्रभाव से आगे जाकर वो श्रीराम के परम भक्त बनकर उनके बताये हर कार्य को अपने लिए आदेश मानकर सम्पूर्ण किया. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हनुमानजी ने भी सूर्यदेव से वेदों और शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया था.
हनुमानजी जैसा रामभक्त और सेवक बनना आसान नहीं है, जिसने अपना संपूर्ण जीवन अपने प्रभु की भक्ति में समर्पित कर दिया. ये उनके ज्ञान का ही प्रभाव था, जिसकी बदौलत वो मूर्छित पड़े श्रीराम के अनुज लक्ष्मण के लिए संजीवनी बूटी के साथ पूरा पहाड़ उठा लाये. ये तेज़ और शक्ति उन्हें, अपने गुरु द्वारा प्राप्त ज्ञान से मिला, जिसने उन्हें अमर कर दिया.