यही अंतर था श्रीराम और रावण में, प्रभु राम ने नहीं किया किसी को भी अपमानित

इस संसार में मनुष्य होने के नाते हमें कभी किसी को कमतर नहीं समझना चाहिए. समय और स्थिति कभी भी बदल सकती है. अत: कभी किसी का अपमान ना करें. ना ही किसी को तुच्छ समझें. आप शक्तिशाली हो सकते हैं, पर समय आपसे अधिक शक्तिशाली है.

भगवान श्रीराम ने कभी किसी को अपमानित नहीं किया. और हर समय छोटे बड़े सभी जीवों के लिए उनके मन में अपार प्रेम था, जिसकी वजह से सभी उनके किसी न किसी रूप में काम आये. यहाँ तक कि, जब समुद्र पर रामसेतु का निर्माण हो रहा था, कहा जाता है उस समय एक छोटी सी गिलहरी ने भी उसमें अपना योगदान दिया था. भगवान राम की वानर सेना में हर तरह के छोटे बड़े वानर थे, और उन सबने मिल जुलकर पूरी श्रद्धा से दिन रात अपने प्रभु के लिए काम किया. और देखते ही देखते समुद्र पर रामसेतु का निर्माण हो गया. और प्रभु राम की सेना ने लंका की तरफ कूच कर दिया.

तो वहीँ दूसरी तरफ रावण वैसे तो परम शक्तिशाली था, लेकिन उसे अपनी शक्ति पर अपार घमंड था. और वो किसी को कुछ नहीं समझता था. जो भी उसे सलाह देने की कोशिश करता या अच्छी बातें बताता वो सब उसके लिए मूर्ख के समान थे. और उन सबकी बातें उसे उपदेश जैस ही लगती थी.

रावण के नानाजी, उसकी पत्नी महारानी मंदोदरी तक सबने उसे बार बार समझाया पर उसने किसी की बात को अहमियत नहीं दी. और उसके सगे भाई विभीषण ने भी समय रहते उसे बहुत कुछ समझाने का बार बार प्रयास किया. पर उसने भरी सभा में विभीषण को अपमानित करके लंका से बाहर निकाल दिया. अगर वो अपने भाई की बात को सुन लेता और उसपे अमल करता तो उसके कुल का इस तरह अंत नहीं होता. इसीलिए कहते हैं, अहंकार इंसान की मति भ्रष्ट कर देता है. और मनुष्य सामने बैठे ग्यानी को भी मूर्ख समझने लगता है.