भगवान राम का वैवाहिक जीवन हर इंसान के लिए है आदर्श

विवाह एक ऐसा पवत्र बंधन होता है, जिसमें मर्यादा, अनुशासन, कर्तव्य, सहनशीलता, धैर्य सब कुछ समाहित है. एक दूसरे के जीवन के लिए समर्पित पति पत्नी का रिश्ता दायित्व निर्वाह करने की प्रेरणा देता है, जीवन को एक उचित उद्देश्य देता है. हालांकि आज के दौर में छोटी छोटी बातें भी कटुता की वजह बन जातीं हैं, इससे यह समझ में आता है कि, इस रिश्ते में वो समर्पण या सहनशीलता नहीं है, जो इंसान को बांधकर रख सके. वैवाहिक बंधन को किस तरह सहेजकर रखा जा सकता है, इसकी प्रेरणा हम श्रीराम और माता सीता के वैवाहिक जीवन से ले सकते हैं.

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उनका परस्पर रिश्ता हमने ये सिखाता है कि, पति पत्नी को सुख और दुःख दोनों ही अवस्था में एक दूसरे के साथ रहना चहिये. जब श्रीराम वनवास के लिए जा रहे थे, तो उन्होंने सीताजी से कहा कि, उन्हें राजमहल में ही रहना चाहिए, लेकिन माता सीता श्रीराम के साथ वन में गईं, और सारे सुख वैभव छोड़कर उनके साथ रहीं. ये प्रसंग हमें त्याग और समर्पण की भावना सिखाता है.

जब रावन माता सीता को अपने साथ लंका में ले गया, तो श्रीराम ने अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया कि, वो जब तक उन्हें वापस लेकर नहीं आयेंगे तब तक चैन से नहीं बैठेगे, और माता सीता को भी ये विश्वास था कि, श्रीराम उनको अवश्य लेकर जायेंगे, और उन्होंने यही किया.ImageSource

विश्वास, निस्वार्थ प्रेम, अपनापन, एक दूसरे के प्रति इमानदारी, ये सारी बातें वैवाहिक रिश्तों को मजबूती देती हैं. सारी समस्याए अहंकार के भाव से उत्पन्न होतीं है, और पति पत्नी तो एक दूसरे के लिए ही अपना जीवन समर्पित करते हैं, फिर वहां कैसा अहंकार, इसलिए छोटी छोटी बातों को जीवन में बड़ी वजह नहीं बनाना चाहिए. तभी एक वैवाहिक रिश्ता सफल हो सकता है.