जब गंगा माँ की बात से भगवान शिवजी हो गए थे कुपित

जीवन में कुछ भी प्राप्त करना आसान नहीं होता, उसके लिए मेहनत करना बहुत ज़रूरी है. आपने सोहनलाल द्विवेदी द्वारा लिखित कविता की इन पंक्तियों को कई बार सुना और पढ़ा होगा “लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,कोशिश करने वालों की हार नहीं होती”. इन पंक्तियों को एक उदहारण के जरिए समझाने की कोशिश करते हैं. प्राचीन काल में भगीरथ के पिता ने स्वर्ग से गंगा को धरती पर लाने के लिए तपस्या की थी लेकिन उनकी मृत्यु हो गई, तब भगीरथ ने ब्रह्माजी को प्रसन्न करने के लिए कड़ी तपस्या की.

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भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्याजी प्रकट हुए और उन्हें वरदान मांगने के लिए कहा, तब भगीरथ ने वर मांगा कि मेरे पूर्वज सगर के पुत्रों की मुक्ति के लिए स्वर्ग से देवनदी गंगा को धरती पर लाना चाहता हूं. गंगा की धारा से मेरे उन पूर्वजों को मुक्ति मिलेगी, नया जीवन मिलेगा और मुझे भी एक पुत्र की प्राप्ति होगी. ब्रह्माजी ने भगीरथ की इस इच्छा का पूरा किया लेकिन सावधान करते हुए कहा, कि जब गंगा धरती पर उतरेगी तो उसके वेग को सहन करने और बांध देने के लिए किसी शक्ति की आवश्यकता होगी, और गंगा के प्रभाह को बांधने के लिए सिर्फ महादेव शिव की ही शक्ति से कंट्रोल किया जा सकता है.

ब्रह्मा जी की बात के अनुसार भगीरथ ने शिवजी को भी प्रसन्न करने के लिए तपस्या की. भगीरथ की तपस्या से शिवजी प्रसन्न हुए और उन्होंने भगीरथ को वरदान दिया कि जब गंगा स्वर्ग से उतरेंगी तो वे उसे अपनी जटाओं में स्थान देंगे. यह देख भगीरथ को लगा कि अब सभी कठिनाइयाँ समाप्त हो गईं, लेकिन दिक्कत तो जब आई जब गंगा ने अपनी आशंका जाहिर करते हुए कहा, कि जब शिवजी उन्हें अपनी जटाओं में स्थान देंगे तो शायद वे अपवित्र हो सकती हैं.

गंगा की इस बात से शिव जी अपमानित महसूस करने लगे. और जब गंगा धरती पर उतरी तब शिव जी ने उन्हें जटाओं से बांध दिया. उसके बाद गंगा नदी कैलाश तक तो आई, लेकिन पृथ्वी तक नहीं पहुंची. तब भगीरथ ने शिवजी और गंगा को प्रसन्न करने के लिए दोबारा तपस्या की. और फिर शिव जी प्रसन्न हुए और उन्होंने गंगा को सात धाराओं में बांट दिया. उसके बाद गंगा भगीरथ के साथ धरती पर चलने के लिए तैयार हो गईं.

आपने इस कहानी में गौर किया होगा कि भगीरथ ने कितनी मुश्किलों का सामना किया लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और प्रयास करते रहे और फिर वह दिन भी आया जब उन्हें सफलता भी मिली. अर्थात बड़े लक्ष्य को पाने के लिए मुश्किलों का डटकर सामना करें. अगर मेहनत में ईमानदारी होगी तो सफलता अवश्य मिलेगी.