भगवान श्री गणेश ब्राह्मण के वेश में आकर कर दिया था रावण को भ्रमित

भगवान श्रीराम और लंकापति रावण के बीच जो युद्ध हुआ उसे नियति ने बहुत पहले ही तय कर दिया था. वैसे अगर देखा जाए तो रावण भी बहुत विद्वान और शक्तिशाली था, लेकिन उसके दुर्गुणों ने उसकी सारी प्रतिभा को ख़तम कर दिया था. जब वो माता सीता को अपने साथ धोखे से लेकर आया उसके विनाश की कहानी वहीँ से प्रारम्भ हो गई थी. पर इससे पहले भी काफी कुछ ऐसा हुआ जो विधि के विधान ने आने वाले समय के हिसाब से निर्मित कर दिया था.

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ये बात सभी जानते हैं, कि रावण भगवान भोले शंकर का बहुत बड़ा भक्त था. और वो शिवजी कि भक्ति करके उन्हें प्रसन्न करना चाहता था, ताकि वह अपने लिए उनसे मनचाहा वरदान प्राप्त कर सके, और वो अपार शक्तिशाली बन जाये, पर भगवान श्री गणेश ने अपनी कुशलता से रावण को बहुत शक्तिशाली बनने से रोक दिया. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एक बार रावण ने अपने संगीत कौशल से भगवान शिव को प्रसन्न किया, उन्हें आशीर्वाद देने कि लिए भगवान शिव ने एक शिव लिंग देते हुए, उससे कहा कि, वो इसे लंका में ले जाकर स्थापित कर दे. उन्होंने रावण से कहा कि अगर शिव लिंग श्रीलंका पहुंचता है, तो रावण को कोई शरीर नहीं जीत सकता, लेकिन उन्होंने एक शर्त भी रखी, जिसके अनुसार, लंका ले जाते समय वह रास्ते में कहीं भी शिवलिंग को पृथ्वी पर न रखे, और यदि ऐसा हुआ तो उसे मिले वरदान का असर समाप्त हो जायेगा.

और जब रावण गोकर्ण (कर्नाटक में एक जगह) पहुंचा, वहां उसकी इच्छा सरोवर में स्नान करने की हुई, पर असमंजस ये था कि, शिवलिंग को कौन सम्हाले, तभी भगवान श्री गणेश, ब्राह्मण लड़के के रूप में वहां उपस्थित हुए और कुछ समय के लिए शिव लिंग को पकड़ने के लिए राजी हो गए. उन्होंने रावण को यह भी बताया कि यदि वह निर्धारित समय से वापस नहीं आएगा, तो वह शिव लिंग को वहीँ रख देंगे. उसके बाद श्री गणेश की लीला से रावण के आने में देरी की और भगवान श्री गणेश ने वहां शिव लिंग रखा और गायब हो गए. उसी समय से उस जगह को गोकर्ण कहा जाता है. इस तरह रावण अपने इरादों में कामयाब नहीं हो सका.