प्रभु श्रीराम की मर्यादा- ना हारना, ना थकना, सर उठाकर जीना, कभी नहीं रुकना

अभी कुछ दिन पहले ही श्रीराम जन्मभूमि के लिए भूमिपूजन हुआ है. राम भक्तों का उत्साह पूरे देश और दुनिया में सबने देखा. कितने व्याकुल थे लोग अपने प्रभु के स्वागत के लिए. और क्यों नहीं होंगे. उन्होंने ही तो इस मानवजाति को जीवन का धर्म सिखाया, प्राणियों को सत्कर्म सिखाया. देवों ने भी मानव रूप में उनके महान कार्यों को देखा. कितने लोगों का उद्धार किया. कितने दुखियों का बेड़ा पार किया, और सबकुछ अनुशासन और मर्यादा के साथ. पूरा जीवन संत की तरह जीते हुए मानव सेवा को ही अपना सबसे बड़ा धर्म बनाया. एक प्रतापी राजा होने के समस्त गुणों को अपनाकर संयम और धैर्य के साथ सबकी भावनाओं को सम्मान दिया. धरती पर श्रीराम जो कर गए, जिसने वो आदर्श थोड़े से भी अपना लिए तो समझो वो तर गए. सनातन परम्पराओं के अग्रज हैं श्रीराम, आदर्शों की मिसाल और हम सबके भगवान. और अब हमारे प्रभु श्रीराम का मंदिर बनने जा रहा है.

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उनकी जन्मभूमि अयोध्या नगर का नाम तो हमारे लिए हमेशा ही गौरव रहा है, यही वो धरती है, जहाँ श्रीराम ने जन्म लिया, उनका बचपन यहीं बीता, हालांकि बाद के जीवन में उन्हें बहुत संघर्ष करना पड़ा, पर बाद में उनका इसी नगर में राज्यभिषेक हुआ, और सदाचारी जीवन जीते हुए उन्होंने न्यायप्रियता की मिसाल कायम की.

श्रीराम साक्षात ईश्वर हैं. उन्होंने सादा जीवन और महान कर्मों से लक्ष्य को साधने का परम ज्ञान दिया. मर्यादा के साथ कैसे रहना होता है, इसका भान दिया. एक सदाचारी मानव के गुण कैसे होने चहिये, इसका जीवंत उदाहरण सिखा दिया. प्रभु राम हम सबके ह्रदय में बसते हैं. जीवन की विपदाओं से जब हम घबराते हैं तो वो हमें सम्हालते हैं. और हमारा हाथ पकड़कर हमें आगे खींच लेते हैं. और यही कहते हैं, ना हारना, ना थकना, सर उठाकर जीना, कभी नहीं रुकना.