अयोध्या के राजा भगवान श्रीराम का अवतार जन कल्याण के लिए हुआ था। यही कारण था कि उन्होंने महलों में रहने की बजाय देश के कई हिस्सों में यात्राएं कीं। ये यात्राएं उन्होंने शिक्षा ग्रहण करने के लिए गुरुकुल जाने के लिए की हो या फिर धनुष यज्ञ में भाग लेने के लिए या फिर 14 साल के वनवास के दौरान, उनका उद्देश्य जन कल्याण ही था। इन यात्राओं के बीच उन्होंने कई भक्तों को दर्शन देकर कृतार्थ किया और कई राक्षसों का अंत कर शांति की स्थापना की। भगवान श्रीराम के जहां-जहां चरण पड़े हैं, किसी न किसी रूप में उनके निशान आज भी मौजूद हैं।
संभवत: भगवान श्रीराम ने बचपन में ही अपने महल से बाहर पहला कदम गुरुकुल जाने के लिए निकाला था, यह गुरुकुल महर्षि वशिष्ठ का आश्रम था, जहां उन्होंने अपने भाइयों लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के साथ पढ़ाई की थी। क्या आप जानते हैं कि यह आश्रम अब कहां है और उसे किस नाम से जाना जाता है। रामायण काल की यह जगह राजस्थान के हिल स्टेशन माउंटआबू में है, जहां भगवान श्रीराम ने अपने भाइयों के साथ शिक्षा ग्रहण की थी। भगवान श्रीराम से जुड़े कई प्रमाण यहां आज भी मौजूद हैं। यहां पहुंचने के लिए 450 सीढ़ियों से नीचे उतरना होता है, यहां साढ़े पांच हजार साल पुराना मंदिर है। इस स्थान की ऊंचाई समुद्रतल से 1206 मीटर यानी 3970 फीट है। भगवान राम के यहां आने के कई सबूत मौजूद हैं। अर्धकाशी कहलाने वाली इस नगरी में भगवान राम की पाठशाला है। इसके साथ ही उनकी लीला से जुड़े कई अन्य स्थल भी हैं।
महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में प्राचीन रामकुंड स्थित है। इस रामकुंड का वर्णन स्कंद पुराण में भी आता है। यहां भगवान राम रोज सुबह स्नान किया करते थे। बाद में यह रामकुंड के नाम से जाना जाता है। इस कुंड के बारे में खास बात ये है कि इसका पानी लोग आज भी पीते हैं। रामकुंड के पानी के बारे में ये माना जाता है कि ये कई रोगों से मुक्ति दिलाने वाला और मानसिक शांति देने वाला है। रामकुंड का जल विदेशी भी ले जाते हैं। स्थानीय लोगों की इस कुंड और उसके जल के प्रति गहरी आस्था है। लोग इसे भगवान राम का प्रसाद मानते हैं। रामकुंड का पानी कभी भी खराब नहीं होता है, इसलिए जो श्रद्धालु यहां आते हैं वे इसके जल को आदर के साथ अपने साथ जरूर ले जाते हैं और गंगा जल की तरह इसे पूजा में रखते हैं।
भगवान श्रीराम और उनके भाइयों यानी लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न को योग और शिक्षा महर्षि वशिष्ठ ने दी थी। इस बात का प्रमाण है महर्षि वशिष्ठ का योग ग्रंथ। माउंटआबू का गौमुख और वशिष्ठ आश्रम देश ही नहीं विश्व में अपना अलग स्थान रखता है। यह आज भी शिक्षा का केंद्र है, जहां देश-विदेश से बच्चे यहां पढ़ने आते हैं। श्रीराम के बाद यहां आज भी शिक्षा का बहुत अच्छा माहौल है। भगवान श्रीराम के लिए रामचरित मानस में तुलसीदासजी ने लिखा है- गुरु गृह गये पढ़न रघुराई, अल्पकाल विद्या सब पाई, मतलब भगवान श्रीराम ने बहुत कम समय में सभी विद्याएं सीख ली थीं। आज भी यह स्थान और यहां शिक्षा का वातावरण होना गौरव की बात है।