भगवान श्रीराम गुरुकुल में हुए जीवन के संघर्ष के लिए तैयार

भारत वर्ष के इतिहास में वीरता के ऐसे हजारों किस्से हैं, जिनसे आज हमें गौरवान्वित होने का मौका मिलता है. इस देश में हर वीर पुरुष के पीछे एक आदर्श गुरु का योगदान अवश्य रहा है. जैसे भगवान श्रीराम और उनके भाइयों को गुरु वशिष्ठ ने जीवन पथ का मार्ग दिखाया, तो गुरु द्रोण ने अर्जुन को महान योद्धा बनाया. चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को सम्राट बना दिया, तो स्वामी विवेकानंद को आचार्य रामकृष्ण परमहंस ने महान विद्वान बना दिया. गुरुकुल की शिक्षा एवं गुरु शिष्य परम्परा ने भारतवर्ष को श्रीराम, श्रीकृष्ण, युधिष्ठिर, अर्जुन और कर्ण, जैसे महापुरुष और महावीर दिए, और इन सब लोगों ने समाज में आदर्श मूल्य स्थापित किये, संस्कार, सम्मान, अध्यात्म, ये सब इसी परम्परा की वजह से इंसान के व्यक्तित्व में आते हैं.

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रामायण के प्रसंगों में से सबसे महत्वपूर्ण है, श्रीराम और उनके सभी भाइयों की शिक्षा – दीक्षा. एक राजा के बेटे जब शिक्षा हासिल करने के लिए जाते हैं, तो उन्हें अपना सबकुछ राजमहल में ही छोड़कर जाना होता है, गुरुकुल में शास्त्रों की शिक्षा के साथ ही उनसे सभी तरह के कठोर कार्य करवाए जाते हैं, जंगल से लकड़ियाँ लाना, आश्रम की साफ़ सफाई करना, सभी विद्यार्थियों द्वारा मिलकर दैनिक कार्य पूरे करना, ज़मीन पर सोना, सादा भोजन करना, और इन सभी कार्यों के माध्यम से श्रीराम के साथ सभी लोगों को जीवन में संघर्ष के लिए तैयार किया जा रहा था, क्योंकि किसी को नहीं पता, किसके नसीब में क्या है, राजा का बेटा वनवासी हो सकता है, फलफूल खाकर उसे जीवन के दिन निकालने पड़ सकते हैं, जैसा श्रीराम के साथ हुआ, और गुरु भी सच्ची निष्ठां और बिना किसी स्वार्थ के अपने विद्यार्थियों को जीवन में आगे की लड़ाई के लिए तैयार करते हैं, और इसी भावना से सम्मान आता है, जीवन में गुरु का महत्त्व समझ में आता है, और यही विद्यार्थी जब पढ़कर बाहर निकलते हैं तो, उनकी निगाहों में सबके लिए सम्मान, और जीवन में अच्छे काम करने के संकल्प होते हैं.