भगवान श्रीराम की यात्राओं में पहली यात्रा गुरुकुल जाने की रही है। इसके बाद वे ऋषि विश्वामित्र के साथ यज्ञ की रक्षा करने के लिए गए और फिर वहां से अहिल्या उद्धार करते हुए मिथिला पहुंचे और फिर जनकपुर में धनुष यज्ञ में हिस्सा लेकर सीताजी के साथ विवाह किया। इसके बाद उनकी सबसे महत्वपूर्ण यात्रा वन गमन की रही है। जब भगवान श्रीराम, पिता दशरथजी की आज्ञा से वनवास रवाना हुए तो वे अयोध्या से करीब 20 किलोमीटर दूर तमसा नदी पर पहुंचे थे, जहां से उन्होंने नदी पार कर यात्रा आगे बढ़ाई।
सभी जानते हैं भगवान श्रीराम को 14 वर्ष का वनवास हुआ था। उनके साथ उनकी पत्नी सीताजी और भाई लक्ष्मण भी वन गए थे। इस वनवास काल में भगवान श्रीराम ने कई ऋषि-मुनियों से शिक्षा और विद्या ग्रहण करते हुए तपस्या की और भारत के आदिवासी, वनवासी सहित कई तरह से भारतीय समाज को संगठित कर उन्हें धर्म पर चलने का मार्ग दिखाया। इस प्रकार उन्होंने अपनी यात्रा से भारत को एक सूत्र में बांधा, लेकिन इस दौरान उनके साथ कुछ ऐसा भी घटित हो गया, जिसने उनके जीवन को बदल कर रख दिया।
रामायण और अनेक अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार जब भगवान श्रीराम को वनवास हुआ, तब उन्होंने अपनी यात्रा अयोध्या से शुरू करते हुए रामेश्वरम् और उसके बाद श्रीलंका में समाप्त की, इसके बाद वे लंका विजय तक अयोध्या लौटे। इस पूरी यात्रा और वनवास के दौरान उनके साथ भगवान राम के जहां-जहां चरण पड़े, उनमें से 200 से अधिक स्थानों की पहचान कर ली गई है। इन स्थानों पर आज भी कई स्मारक और अन्य स्थल विद्यमान हैं, जहां श्रीराम-सीता और लक्ष्मण ठहरे थे। विशेषज्ञों ने कई स्मारकों, भित्तिचित्रों, गुफाओं आदि स्थानों के समय-काल की जांच-पड़ताल वैज्ञानिक तरीकों से की।
वाल्मीक रामायण में अयोध्या के निकट बहने वाली छोटी नदी के रूप में तमसा का उल्लेख हुआ है। यह तमसा नदी अयोध्या से लगभग 20 किलोमीटर दूर आज भी मौजूद है, यहां पर श्रीराम, सीता और लक्ष्मण ने नाव से नदी पार की। अयोध्या से वन रवाना होने पर श्रीराम, लक्ष्मण और सीता ने तमसा नदी के किनारे पर ही पहली रात बिताई थी। इससे स्पष्ट होता है कि रामायण तथा पुराणों में उल्लेखित प्रसिद्ध तमसा नदी यही है। वर्तमान में यह नदी अयोध्या से लगभग 12 मील दक्षिण में बहती हुई लगभग 36 मील के बाद अकबरपुर के पास बिस्वी नदी से मिलती है। इसके बाद तमसा और बिस्वी दोनों संयुक्त नदी का नाम टौंस हो जाता है, जो कि तमसा का ही अपभ्रंश माना गया है। तमसा नदी पर अयोध्या से कुछ दूरी पर वह स्थान भी है जहां भगवान श्रीराम के पिता महाराजा दशरथ के शब्दभेदी बाण से श्रवण कुमार की मृत्यु हुई थी।
अयोध्या से लगभग 12 मील दूर तरडीह नाम का गांव है, जहां श्रीराम ने पत्नी और भाई के साथ वनवास यात्रा के समय तमसा नदी पार की थी। वह घाट अभी भी रामचौरा के नाम से विख्यात है। यह टौंस नदी आजमगढ़ जिले में बहती हुई बलिया के पश्चिम में जाकर पवित्र गंगा नदी में मिल जाती है। इस तरह अयोध्या से भगवान श्रीराम ने वन यात्रा में तमसा नदी पहुंचकर अपनी पहली राम बिताई थी। यह जगह लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है।