अश्वमेध का हो रहा अवध में अनुष्ठान

अयोध्या में प्रभु श्रीराम का जन्मोत्सव- हवन यज्ञ और ब्राह्मणों को दान देकर मनाया जाता है। वहीं लक्ष्मण जी की सलाह पर राम जी गुरुदेव महर्षि वशिष्ठ की आज्ञा से अश्वमेध यज्ञ का संकल्प करते हैं और साथ ही यह भी स्पष्ट करते हैं-

अति सुंदर प्रस्ताव है।हमें इस बात का आभास है कि रावण का वध करने से हम एक ब्रह्म हत्या के दोषी हैं। इसलिए गुरुदेव की आज्ञा से हम अश्वमेध यज्ञ का संकल्प करते हैं।

यहां हमें दो विशेष बातों को ध्यान देना चाहिए -पहला ये कि जन्मदिन मनाएं तो सात्विक और संस्कारी तरीके से पूजा पाठ, दान पुण्य करके मनाएं और शुभकामनाओं के साथ साथ बड़ों का आशीर्वाद अवश्य लें।

दूसरा- कर्मकांडी ब्राह्मण कैसा भी हो उसके साथ दुर्व्यवहार या उसकी हत्या, घोर पाप है, जिसका प्रायश्चित उस समय बहुत ही मुश्किल था और आज तो असंभव है। आज हमारे समाज में साधु संतों की उपेक्षा, उनके साथ दुर्व्यवहार और उनकी हो रही हत्याएं जघन्य से जघन्य अपराध हैं और सर्वनाश के अतिरिक्त इनका और कोई प्रायश्चित नहीं है।

इसीलिए रामायण सबके लिए जरूरी है, कोई किसी भी धर्म का हो किसी भी संप्रदाय का हो।
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Jai Shriram 🙏#goodmorning

Gepostet von Arun Govil am Dienstag, 26. Mai 2020

रामजी ने अश्वमेध यज्ञ का संकल्प तो ले लिया परंतु धर्म पत्नी के बिना कोई भी धार्मिक कार्य पूरे नहीं होते अतः ये महायज्ञ भी नहीं किया जा सकता था। दूसरे विवाह का प्रस्ताव किसी भी तरह रामजी को स्वीकार नहीं था।
इस बड़े धर्म संकट की अवस्था में राम जी ने कहा- हमारे दूसरा विवाह करने से हमारे पत्नी व्रत धर्म का खंडन होता है। शास्त्रों में खोजिए। ऐसे धर्म संकट का कोई तो उपाय होगा।

गुरु वशिष्ट ने उपाय सुझाया की ऐसी स्थिति में पत्नी की मूर्ति बनाकर पत्नी के स्थान पर रखकर धर्म कार्य पूरा किया जा सकता है।

राम जी ने सीता जी की सोने की मूर्ति बनवाकर अश्वमेध यज्ञ करने का निर्णय लिया और यह प्रमाणित कर दिया कि सीता के प्रति उनके मन में वही सम्मान, वही स्थान अभी भी है। साथ ही राम ने संपूर्ण नारी जाति को एक नया गौरव प्रदान किया।
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सर्वधर्म समभाव का एक महान उदाहरण प्रस्तुत करते हुए राम जी ने विश्व के समस्त छोटे बड़े राजाओं, प्रांत अध्यक्षों, ऋषि-मुनियों, विद्वानों, बुद्धिजीवियों को इस महान यज्ञ में सादर आमंत्रित किया।
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12 वर्षों बाद पूरा राज परिवार एकत्र हुआ। तीनों माताएं, चारों पुत्र, भरत लक्ष्मण शत्रुघ्न तीनों के दो-दो पुत्र और तीन बहुएं। कौशल्या माता सहित सारा राज परिवार सीता जी की कमी से बहुत दुखी होती है।

एक सम्मिलित परिवार का एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव और समर्पण देखना हो तो रामायण का यह प्रसंग देखना सुनना चाहिए। एक आदर्श परिवार का अद्वितीय उदाहरण।