संसार के हर कोने में एक सत्य सब मानते हैं कि यह सारा ब्रह्मांड किसी एक परम शक्ति (सुप्रीम पावर) द्वारा ही संचालित हो रहा है। शास्त्रों के अनुसार उसी परम शक्ति ने जब यह संसार रचने का संकल्प किया तो उच्च अधिकारी के रूप में अपने निराकार स्वरूप से एक साकार स्वरूप उत्पन्न किया जिसे ‘ब्रह्मा’ कहा जाता है।
चूँकि ब्रह्मा जी को परमेश्वर ने स्वयं उत्पन्न किया इसलिए उनको भगवान भी कहा जाता है। व्यावहारिक दृष्टि से ब्रह्मा जी एक जीव हैं जिनकी उत्पत्ति होती है और विनाश भी होता है परंतु उनका जीवनकाल इतना बड़ा है जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय आठ के सत्रहवें श्लोक की व्याख्या में ब्रह्मा जी की आयु का एक विवरण मिलता है जिसे समझने के लिए है हमें एक पौराणिक कैल्कुलेशन को समझना होगा। सामान्य रूप से समय को मापने के हमारे पास जो माध्यम हैं वे हैं दिन, महीने, साल, शताब्दी और उससे आगे बढ़े तो युग।
वैदिक परंपरा में चार युगों की मान्यता है जिनमें अभी चौथा युग (कलियुग)चल रहा है और इसकी अवधि है 4,32,000 साल। इसी युग के पैमाने पर ब्रह्माजी की आयु को मापने का एक प्रयास किया गया है-
कलियुग – 4,32,000 वर्ष
द्वापर युग – 8,64,000 वर्ष
(कलियुग का दोगुना)
त्रेता युग 12,96,000 वर्ष
(कलियुग का 3 गुना)
सत युग 17,28,000 वर्ष
(कलियुग का 4 गुना)
चारों युगों को मिलाकर एक चतुर्युगी बनती है जिसमें 43,20,000 ( तैंतालीस लाख बीस हजार) वर्ष होते हैं और इस चतुर्युगी के 1000 चक्र पूरा करने अर्थात एक हजार बार चारों युगों के आने और बीत जाने पर ब्रह्मा जी का एक दिन पूरा होता है और इतनी ही बड़ी ब्रह्मा जी की एक रात होती है, जिसे ब्रह्म दिवस कहते हैं। शास्त्रीय मान्यता के अनुसार ब्रह्मा जी के इस 1 दिन में ही सारी सृष्टि का निर्माण होता है और दिन बीतने पर आंशिक प्रलय होती है और सब कुछ नष्ट हो जाता है। अगले दिन से फिर वही क्रम चलता है।
इसी ब्रह्म दिवस के अनुसार ब्रह्मा जी का सप्ताह, महीना और साल गिना जाता है और ऐसे 100 साल तक वे जीवित रहते हैं उसके बाद उनकी मृत्यु हो जाती है जिसे शास्त्रों में महाप्रलय कहा गया है।
मृत्युलोक अर्थात धरती पर यदि हम वर्षों में ब्रह्मा जी की आयु लिखना चाहें तो-
31,10,40,00,00,00,000. (दस नील) वर्ष के बराबर है।
माप का जो पैमाना वर्तमान में हमें पढ़ाया गया है वो कुछ इस प्रकार है–
इकाई -0 (1)
दहाई -00(2)
सैकड़ा -000(3)
हजार -0000(4)
दस हजार-00000(5)
लाख – 000000(6)
दस लाख-0000000(7)
करोड़ -00000000(8)
दस करोड़-000000000(9)
अरब- 0000000000(10)
दस अरब- 00000000000(11)
खरब- 000000000000(12)
दस खरब- 0000000000000(13)
नील- 00000000000000(14)
दस नील-000000000000000(15)
पदम- 0000000000000000(16)
दस पदम -00000000000000000(17)
शंख-000000000000000000(18)
महाशंख-0000000000000000000(19)
इस प्रकार ब्रह्मा जी मानव इतिहास के प्रथम पुरुष हैं और इसके बाद सृष्टि को आगे बढ़ाने के लिए शास्त्रों में उनके मानस पुत्रों की मान्यता है जिनमें सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार के बाद मारिचि,अत्रि, अंगिरा, वशिष्ठ, पुलस्त्य, पुलह, कृतु, भृगु, दक्ष, कन्दर्भ, नारद, चित्रगुप्त और मनु हैं।
ब्रह्मा जी के ये सारे वंशज उनके संकल्प द्वारा उत्पन्न हुए और सृष्टि की व्यवस्था में ब्रह्मा जी ने सबको अलग-अलग अधिकार बांट दिए। सृष्टि रचना के इसी क्रम में ब्रह्मा जी ने मानव सभ्यता का शुभारंभ करने और उसे आगे बढ़ाने का उत्तरदायित्व दिया मनु को जिनके अंश से उत्पन्न हुआ जीव मनुष्य कहलाया।
इति कृतम्