आज पूरे देश में अक्षय तृतीया मनाई जा रही है. इसे आखा तीज भी कहा जाता है. अक्षय का अर्थ होता है, जिसका कभी क्षय न हो, नाश ना हो. वैशाख शुक्लपक्ष की ये तृतीया ऐसे ही अक्षय नही मानी जाती, आइये जानते हैं इसका इतना महत्व क्यों है-
इसी तिथि को ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का अवतरण हुआ था.
जगत का भरण पोषण करने वाली माँ अन्नपूर्णा का अवतरण भी इसी दिन हुआ था.
अक्षय तृतीया के दिन ही परम तपस्वी चिरंजीवी महर्षि भगवान परशुराम का जन्म हुआ.
इसी तिथि को कुबेर धनाध्यक्ष बने, माँ गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था.
सूर्य भगवान ने पांडवों को अक्षय पात्र दिया. महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था.
इसी विशेष तिथि से महर्षि वेदव्यास जी ने महाकाव्य महाभारत की रचना गणेश जी के साथ प्रारम्भ की.
जैनागम के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ भगवान ऋषभदेवजी ने 13 महीने के कठिन उपवास के पश्चात इक्षु (गन्ने)के रस द्वारा आज की तिथि में पारणा किया था.
इसी पावन तिथि से सुप्रसिद्ध तीर्थ स्थल श्री बद्री नारायण धाम के कपाट खोले जाते है.
आज के दिन वृन्दावन के बाँके बिहारी मंदिर में श्री कृष्ण चरण के दर्शन होते है.
जगन्नाथ भगवान के सभी रथों को बनाना प्रारम्भ किया जाता है.
अक्षय तृतीया के दिन ही आदि शंकराचार्य ने कनकधारा स्तोत्र की रचना की थी.
अक्षय का मतलब है जिसका कभी क्षय (नाश) न हो..
अक्षय तृतीया एके स्वयं सिद्ध मुहूर्त है, इसमें कोई भी शुभ कार्य का प्रारम्भ किया जा सकता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन किए गए कार्यों में सफलता जरूर मिलती है. इसके अलावा अक्षय तृतीया के दिन दान करने का बहुत अधिक महत्व होता है. इस दिन दान करने से कई गुना फल की प्राप्ति होती है.
आप सबको अक्षय तृतीया की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएं.