रामचरित मानस के सुंदरकांड का यह दोहा तो आपने सुना-पढ़ा ही होगा कि ब्रह्म अस्त्र तेहि साधा कपि मन कीन्ह बिचार। जौं न ब्रह्मसर मानउं महिमा मिटइ अपार॥ वास्तव में, हनुमानजी जब अशोक वाटिका में सीताजी की खोज में पहुंचते हैं और फिर माता सीता की आज्ञा लेकर अशोक वाटिका से फल-फूल खाते हुए उसे उजाड़ने लगते हैं तो उन्हें रोकने और बंदी बनाने के लिए रावण अपने पुत्र मेघनाद को भेजता है। इस पर मेघनाद हनुमानजी पर ब्रह्मास्त्र चला देता है। ब्रह्माजी द्वारा वरदान में दिया गया यह अस्त्र अचूक होता है और इसके उपयोग से पूरी सृष्टि को एक क्षण में समाप्त किया जा सकता है।
हनुमानजी को यह वरदान था कि उन पर किसी भी अस्त्र-शस्त्र का असर नहीं होगा। इसके बावजूद हनुमानजी इस ब्रह्मास्त्र को इसलिए खुद पर झेल लेते हैं, क्योंकि इससे ब्रह्माजी की अपार महिमा यानी उनकी बनाई सृष्टि के मिटने का खतरा था। इस तरह ब्रह्माजी का मान रखने के लिए हनुमानजी ब्रह्मास्त्र के पाश में स्वेच्छा से बंध गए। फिर इंद्रजीत उन्हें रावण की सभा में ले गया, जहां उनकी पूंछ में आग लगा दी गई और हनुमानजी ने लंका जला डाली।
महाभारत काल में ब्रह्मास्त्र का उपयोग महाभारत युद्ध के बाद हुआ था। अश्वत्थामा पांडवों के सोते हुए पुत्रों को मार देता है। अर्जुन इस अपराध की सजा देने के लिए अश्वत्थामा का पीछा करते हैं तो वह ब्रह्मास्त्र चला देता है। बचाव में अर्जुन भी ब्रह्मास्त्र चला देते हैं। इससे सृष्टि के महाविनाश का खतरा पैदा हो गया था, तब महर्षि वेदव्यास ने बीच-बचाव किया। अर्जुन ने अपने ब्रह्मास्त्र को वापस ले लिया लेकिन अश्वत्थामा ने इसकी दिशा घुमाकर उत्तरा के गर्भ में पल रहे परीक्षित का अंत कर दिया था, हालांकि भगवान श्रीकृष्ण ने उसे फिर से जीवन प्रदान कर दिया।
एक और कथा के मुताबिक ब्रह्मर्षि विश्वामित्र ने महर्षि वशिष्ठ की गाय नंदिनी को पाने के लिए उनके खिलाफ ब्रह्मास्त्र का उपयोग किया था। इस पर वशिष्ठजी ने अपने तपोबल से ब्रह्मास्त्र के वार को रोक लिया था। इसी तरह ऋषि पिप्पलाद, महर्षि दधीचि के पुत्र थे। जब ऋषि पिप्पलाद को पता चला कि उनके पिता की मृत्यु शनि के प्रकोप के कारण हुई है, तब उन्होंने शनिदेव पर ब्रह्मदंड से वार किया था। इसी कारण शनिदेव लंगड़ाकर चलते हैं। इसके बाद शनिदेव ने ऋषि पिप्पलाद से वादा किया था कि वह 12 साल से कम उम्र के किसी बालक को पीड़ा नहीं देंगे।
भगवान श्रीराम ने भी एक बार ब्रह्मास्त्र उठाया था लेकिन सृष्टि का विनाश न हो जाए, यह सोचकर वापस तरकश में रख लिया था। बात वनवास के दौरान की है, जब जयंत नामक असुर ने भगवान राम से युद्ध किया, वह नए-नए रूप धरकर उन पर आक्रमण कर रहा था। एक बार उसने कौए का रूप रखा और माता सीता के पैर में चोंच मार दी। इस पर भगवान राम ने उस पर ब्रह्मास्त्र तान दिया था, लेकिन चलाया नहीं।
अब बड़ा सवाल यह है कि आखिर क्यों ब्रह्मास्त्र चलाने से पहले योद्धा कई बार सोचते थे और गंभीरता से विचार करते थे कि इसके दुष्प्रभाव क्या हो सकते हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि ब्रह्मास्त्र ऐसे ही नहीं प्राप्त होता था बल्कि इसे ब्रह्माजी की तपस्या करके वरदान के रूप में प्राप्त किया जाता था। यह अस्त्र काफी विध्वंसक होता था, इसके बारे में कहा जाता है कि यह छोड़ा जाता है तो लक्ष्य भेदकर ही लौटता है।
आज के समय में इसकी तुलना परमाणु हथियारों से की जा सकती है, क्योंकि यह संभवत: बाण के रूप में किसी मिसाइल की तरह ही होता था, जो कि लक्ष्य साधने में हमेशा सफल रहता था। वास्तव में देखा जाए तो ब्रह्मास्त्र आज के परमाणु शस्त्रों और मिसाइलों से भी ज्यादा घातक था।