पलाश का पेड़ भारत के लगभग सभी हिस्सों में पाया जाता है। वसंत ऋतु में पलाश पर फूल आते हैं। पलाश के फूल तीन रंगों के होते हैं- लाल, पीला और सफेद। पलाश के फूल काफी आकर्षक होते हैं। कहीं-कहीं इन्हें टेसू के फूल या ढाक भी कहा जाता है। तीनों ही तरह के फूलों वाले पलाश में भरपूर औषधीय गुण होते हैं। आयुर्वेद में भी पलाश को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। इसकी जड़, बीज, तना, फूल, फल और गोंद का इस्तेमाल कई तरह के रोगों के इलाज में किया जाता है।
पलाश के फूलों को पानी की भाप में पकाकर उसे सूजन या मोच वाली जगह पर लगाने से राहत मिलती है। पलाश के सूखे हुए फूलों का चूर्ण बनाकर उसका सेवन करने से खून साफ़ होता है। मोतियाबिंद जैसी बीमारी में भी पलाश फायदेमंद होता है। इसकी जड़ों का अर्क निकालकर एक-एक बूंद आँख में डालने से मोतियाबिंद, रतौंधी जैसे रोगों से राहत मिलती है। पलाश के फूलों से बने रस में मिश्री डालकर पीने से नाक से खून निकलना बंद हो जाता है। पाचन संबंधी समस्याओं में भी पलाश का उपयोग किया जाता है। इसकी छाल और सूखे अदरक का काढ़ा बनाकर पीने से पेट की सूजन कम होती है और पाचन तंत्र ठीक रहता है।
पलाश से उत्पन्न गोंद दस्त में बहुत लाभदायक है, साथ ही हड्डियों को भी मजबूती प्रदान करता है। पलाश के बीज से बना चूर्ण दिन में दो बार खाने से पेट के कीड़े मरकर बाहर आ जाते हैं। पलाश का सेवन करने से जोड़ो के दर्द से राहत मिलती है। त्वचा संबंधी परेशानियों के लिए में भी पलाश बहुत उपयोगी है। पलाश के बीज को नींबू के रस में पीसकर लगाने से दाद, खाज, खुजली की समस्या से आराम मिलता है। साथ ही पलाश के फूल को पानी में उबालकर नहाने से भी त्वचा संबंधी रोगों से राहत मिलती है।
पलाश का सेवन हमेशा चिकित्सक के परामर्श पर तय मात्रा में ही करना चाहिए। इसका ज्यादा सेवन करने से कुछ नुकसान भी होते हैं। कुछ लोगों को पलाश का सेवन करने से एलर्जी भी होती है। ऐसे लोगों को पलाश का सेवन नहीं करना चाहिए।