भारत में ऐसे कई किले हैं, जो देश के राजसी इतिहास के गवाह तो हैं ही लेकिन ये अपनी किसी न किसी विशेषता के कारण मशहूर हैं। एक ऐसा ही किला राजस्थान के भरतपुर में भी है, जिसे लौहगढ़ (लोहागढ़) का किला कहा जाता है। इस किले को भारत का अजेय दुर्ग कहा जाता है, क्योंकि इसे कभी कोई जीत नहीं पाया। यहां तक कि अंग्रेजों ने भी इसके आगे हार मान ली थी।
लोहागढ़ दुर्ग राजस्थान के भरतपुर जिले में स्थित है। इसका निर्माण भरतपुर के जाट वंश के महाराजा सूरजमल ने 19 फरवरी 1733 में करवाया था। इसको अजय गढ़ का दुर्ग भी कहते हैं। इसके चारों ओर मिट्टी की दोहरी दीवारें बनी हैं। किले के चारों ओर एक गहरी खाई हैं, जिसमें मोती झील से सुजानगंगा नहर द्वारा पानी लाया गया है। इस किले में दो दरवाजे हैं। इनमें उत्तरी द्वार अष्टधातु का बना है, जिसे जवाहर सिंह जाट सन् 1765 में दिल्ली विजय के बाद लाल किले से उतारकर लाए थे। दीवाने खास के रूप में प्रयुक्त कचहरी शिल्प का उम्दा उदाहरण है। भरतपुर राज्य के जाट राजवंश के राजाओं का राज्याभिषेक जवाहर बुर्ज में होता था। इस किले पर कई आक्रमण हुए हैं, लेकिन इसे कोई भी नहीं जीत पाया। इस पर कई पड़ोसी राज्यों, अन्य आक्रमणकारियों तथा अंग्रेजों ने हमले किए, लेकिन सभी असफल रहे। सन् 1803 में लार्ड लेक ने बारूद भरकर इसे उड़ाने का प्रयास किया था, लेकिन इसका कुछ नहीं बिगड़ा था।
उस समय तोप और बारूद का प्रचलन अधिक था, इसलिए इस किले को बनाने में एक विशेष तकनीक का प्रयोग किया गया था, जिससे बारूद के गोले भी किले की दीवार से टकराकर बेअसर हो जाएं। इस किले के निर्माण के समय पहले एक चौड़ी और मजबूत पत्थर की ऊंची दीवार बनाई गई। इन पर तोपों के गोलों का असर नहीं होता था, इसके लिए इन दीवारों के चारों ओर सैकड़ों फुट चौड़ी कच्ची मिट्टी की दीवार बनाई गई और नीचे गहरी और चौड़ी खाई बना कर उसमें पानी भरा गया। ऐसे में अगर दुश्मन पानी को पार कर भी गया तो सपाट दीवार पर चढ़ना संभव नहीं होता था।
इस किले पर आक्रमण करने पर तोप से निकले हुए गोले गारे की दीवार में धंस जाते थे और उनकी आग शांत हो जाती थी। इससे किले को कोई नुकसान पहुंचता ही नहीं था। यही वजह है कि दुश्मन इस किले के अंदर कभी प्रवेश नहीं कर पाए। कहते हैं कि इस किले पर कब्जा जमाने के लिए अंग्रेजों ने 13 बार आक्रमण किया था। अंग्रेजी सेना ने यहां सैकड़ों तोप के गोले बरसाए थे, लेकिन उन गोलों का किले पर कोई असर नहीं हुआ। वह 13 में से एक बार भी किले को भेद नहीं सके। कहा जाता है कि अंग्रेजों की सेना बार-बार हारने से हताश होकर वहां से चली गई थी।
इस तरह लोहागढ़ सचमुच आयरन किला है, जो लोनावाला में सह्याद्री पहाड़ियों पर स्थित है। यह पावना बेसिन और इंद्रायणी बेसिन को विभाजित करता है। यह किला 1050 मीटर से अधिक की ऊंचाई पर स्थित है। इसे छत्रपति शिवाजी द्वारा भी इस्तेमाल किया गया था। विदर्भ और मराठा राज्य के कई राजवंशों के नजरिये से यह ऐतिहासिक रूप में महत्वपूर्ण है। सैलानियों के साथ ही यहां वास्तुकला, पुरातत्व और इतिहास में एक गहरी रुचि रखने वाले विद्यार्थी भी बड़ी संख्या में पहुंचते हैं।