कुछ लोग अपने जीवन को सफल बनाने के लिए दूसरों को देखकर खुद को प्रेरित करते हैं और कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो खुद दूसरों के लिए प्रेरणा बन जाते हैं. अगर आपके जीवन में कुछ परेशानियां चल रही है, जोश की कमी है तो आज आपको “रहनुमा रानी” की स्टोरी पढ़नी चाहिए. उम्मीद करते हैं आपको आपकी परेशानी के लिए नई आशा की किरण दिखाई देगी.
19 साल की रहनुमा रानी के हाथ नहीं है. कुछ कर गुजरने वाली सोच को उनकी मां ने उनके हौसले को कभी कम नहीं होने दिया. रहनुमा की मां ने अपनी बेटी के पैरों को थामा. और उन्हें उस रास्ते पर ले गईं, जहां जिंदगी उन्हें बाकी के जीवन के लिए खुशियां देने के लिए खड़ी थी.
आपको बता दें कि रहनुमा चंडीगढ़ के सेक्टर 10 स्थित आर्ट्स गवर्मेंट कॉलेज की छात्रा है. रहनुमा के हाथ नहीं हैं, और वो पैरों से सारा काम करती हैं. उनकी रुचि सबसे ज्यादा पेंटिंग करने में है. बीते गुरूवार को इंटरनेशनल डे ऑफ पर्संस विद डिसएबिलिटी के मौके पर उन्होंने अपने बारे में जानकारी दी कि कैसे उन्होंने अपनी डिसेबिलिटी को मां की मदद से दिव्य बनाया.
रहनुमा रानी के अनुसार, जब वो छोटी थीं, उस वक्त अपने भाई और बहन को स्कूल जाते देख उनका भी मन करता था कि वो भी स्कूल जाएं. लेकिन अपनी परेशानी के चलते स्कूल नहीं जा पाती थी. और फिर उन्होंने अपने पैर व मुंह से लिखने की कोशिश शुरू की. लेकिन, मुंह से ज्यादा देर तक लिखना संभव नहीं हो पाता था क्योंकि मुंह में पेंसिल ज्यादा देर रखने से थूक बहने लगता था. तब मां ने हौसला बंधाया और पैर से कोशिश करने की सलाह दी. और फिर निरंतर प्रयास करने के बाद वह दिन आया जब रहनुमा भी स्कूल जाने लगी. वे कहती हैं कि कक्षा आठवी में उन्होंने एक अच्छी ड्रॉइंग बनाई थी और तब से उन्होंने तय कर लिया था कि वे अब पेंटर बनेंगी.
कितने दिन बोलेंगे अपने आप चुप हो जाएंगे
रहनुमा का कहना है, कि पैर से ज्य़ादा देर तक लिखने से पैरों की उंगलियां मुड़ जाती थीं इससे उंगलियों में दर्द होता था. और इस दर्द की वजह से चलने में भी दिक्कतें आती थीं. क्योंकि उनके पैर एक समान नहीं हैं. और वे बताती है कि शुरुआती समय में स्कूल के अन्य बच्चे उनका मज़ाक उड़ाया करते थे. इस विषय पर उनके माता पिता यह कहकर हौसला बढ़ाते थे कि “लोगों की बातों पर गौर न करो, केवल अपने काम पर ध्यान रखो, आखिरकार कब तक बोलते रहेंगे अपने आप चुप हो जाएंगे”.
बनना चाहती है प्रोफेशनल आर्टिस्ट
रहनुमा रानी का सपना है कि वो एक दिन बहुत बड़ी प्रोफ़ेशनल पेंटर बने. उन्हें झूमते पेड़, चलती हवाएं, घने जंगल, चिड़िया आदि को कैनवास पर उतारना पसंद है. 15 अगस्त व 26 जनवरी वाले दिन भारतीय तिरंगे को कैनवास पर उतारकर खुद को गौरवान्वित मानती हैं. वे कहती हैं कि तिरंगे को जब भी देखती है तब जोश भर जाता है, देश के लिए कुछ कर गुजरने का मन करता है.
लोगों के लिए मिसाल
पढ़ाई में अब तक बारहवीं की है और आगे फाइन आर्ट्स में ग्रेजुएशन करने के बाद पेंटर बनना चाहती हैं. रहनुमा रानी कहती है कि वे एक ऐसा उदाहरण बनना चाहती है जिन्हें देखकर लोग हिम्मत से भर जाएं.