किसी भी देश की बौद्धिक ताकत शिक्षा होती है और यही देश और बच्चों का भविष्य है। शिक्षा को लेकर पुरातन काल से लेकर अब तक लगातार चिंतन और उसकी प्रणाली में बदलाव किए जाते रहे हैं। भारत की पुरातन गुरुकुल शिक्षा प्रणाली के समय देश विश्व गुरु के रूप में पहचाना जाता था, लेकिन गुलामी के सैकड़ों वर्षों में देश की मूल शिक्षा प्रणाली को ध्वस्त कर दिया गया। हमारे देश में वह समय भी था जब वशिष्ठ जैसे गुरु थे और भगवान राम जैसे शिष्य। गुरु को पढ़ाने में आनंद आता था और शिष्य को जल्दी-जल्दी अधिक से अधिक सीखने की ललक थी। तभी तो रामचरितमानस में कहा गया है- गुरु गृह गए पढ़न रघुराई, अल्पकाल विद्या सब पाई।
दुर्भाग्य से गुलामी के वक्त अंग्रेजों ने भारत की सशक्त शिक्षा प्रणाली को बदल कर लार्ड मैकाले की क्लर्क बनाने वाले शिक्षा पद्धति को लागू कर दिया था। आजादी के बाद शिक्षा को लेकर चिंतन और परिवर्तन के लगातार दौर चले हैं। फिलहाल 34 साल बाद केंद्र सरकार ने नई शिक्षा नीति में बड़े बदलाव किए हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने कहा भी है कि नई शिक्षा नीति सिर्फ सर्कुलर नहीं, नया भारत तैयार करने की नींव साबित होगी। कभी हमारे देश के गुरुकुलों में बड़े-बड़े योद्धा और विद्वान तैयार होते थे, आज उम्मीद की जा रही है कि भारत दुनिया में ज्ञान के सुपरपॉवर के रूप में अपनी पहचान बनाएगा।
सदियों पहले भारत की शिक्षा प्रणाली कितनी सशक्त और और सार्थक थी, इसको जानने के लिए गुरुकुल की शिक्षा पद्धति को समझना जरूरी है। गुरुकुलों की सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि वहां शिक्षा के लिए कुछ भी शुल्क नहीं लिया जाता था। विद्यार्थी को बाल अवस्था से लेकर शिक्षा पूर्ण होने तक गुरुकुल में आचार्य के सान्निध्य में रहना होता था। इस दौरान राजकुमार हो या सामान्य परिवार का बच्चा, उसे अपनी दिनचर्या के सभी कार्य स्वयं करने होते थे। ज्ञान के साथ शारीरिक श्रम का काफी महत्व था। संवाद और परिचर्चा प्राचीन काल में भी शिक्षा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था।
गुरुकुल वैदिक शिक्षा पद्धति के आधार पर संचालित होते थे। करीब 5 साल की उम्र से शिक्षा का शुभारंभ हो जाता था। वसंत पंचमी पर बाकायदा विद्या की देवी सरस्वती का पूजन करते हुए विद्यारंभ समारोह होता था, इसके साथ ही अक्षर लिखने की शुरुआत होती थी। सबसे महत्वपूर्ण बात यह भी है कि विद्यार्थी को किस तरह की शिक्षा प्राप्त करनी है, उसके अनुकूल शिक्षा दी जाती थी। विद्यार्थी को वेदों की शिक्षा दी जाती थी, लेकिन वेद में पारंगत होने के लिए लगभग 12 साल लग जाते थे। गुरुकुल में ही युद्ध से लेकर वेद और शारीरिक- नैतिक शिक्षा और अंतरिक्ष विज्ञान तक सब कुछ पढ़ाया जाता था। छात्र कितने विषय सीखना चाहता है, उसके आधार पर शिक्षा की अवधि तय होती थी। पढ़ाई में अत्यधिक रुचि रखने वाले कुछ विद्यार्थियों की शिक्षा 48 वर्षों तक भी चल सकती थी।
जीवनयापन के लिए पुरुषों को एक विशेष कौशल अवश्य सिखाया जाता था। मतलब गुरुकुल में शिक्षा रोजगारपरक होती थी। इसके अलावा प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली में 64 कलाओं का उल्लेख होता था, जिनमें नृत्य, संगीत, आभूषण निर्माण, मूर्तिकला, शिल्पकला, कृषि और चिकित्सा आदि शामिल थे। विद्यार्थियों की रुचि के अनुसार ज्योतिष विज्ञान, अंतरिक्ष विज्ञान, सामुद्रिक विज्ञान आदि का भी अध्ययन कराया जाता था। इसके साथ ही न्याय, अर्थशास्त्र और चिकित्सा शास्त्र अनिवार्य विषय होते थे। मल्लयुद्ध, शस्त्र चालन और युद्ध कौशल सीखना राज परिवार के विद्यार्थियों के लिए अनिवार्य होता था।ImageSource
गुरुकुल में निवास के लिए कुटिया होती थी, लेकिन शिक्षा किसी पेड़ के नीचे दी जाती थी जहां भरपूर ऑक्सीजन, गहरी छाया और प्रकृति से निकटता रहती थी। सामान्य रूप से बच्चे समूह में बैठते थे, लेकिन आचार्य छात्र की क्षमता और उसकी योग्यता के आधार पर व्यक्तिगत रूप से अलग से भी शिक्षण देते थे। वेद सामान्यतः मौखिक सस्वर रूप में पढ़ाए जाते थे। आत्मनिरीक्षण, कथाएं, स्मरण शक्ति, विश्लेषण और व्यावहारिक अध्ययन गुरुकुल की विशेषताएं होती थीं।
हाल ही में शिक्षा नीति में बड़ा परिवर्तन हुआ है। आशा है इसमें पुरातन गुरुकुल पद्धति और वर्तमान की अत्याधुनिक शिक्षा प्रणाली का उचित समन्वय दिखाई देगा और इसके माध्यम से देश नई ऊंचाइयों को प्राप्त करेगा। इसके बाद भारत को फिर से विश्व गुरु बनने से कोई नहीं रोक पाएगा।